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खूनी औरत का।


और कौन खुन्नी! यह देख मैंने मनही मन यह सोचा कि बाहरी पुन्नी और मुन्नी! तुम दोनों के भी खूब ही नसीबे जागे?

इसके बाद मैंने क्या देखा कि एक तरफ आठ दस आदमी खड़े हैं और उन्हीं के पास खड़ी हुई पुन्नी कुछ बात चीत कर रही है। मैंने उन आदीमयों में पुन्नी के मकान मालिक को देखकर पहचाना और देखा कि पुन्नी ने उन (मालिक मकान) के हाथ में कुछ रुपये दिये और दोनों बहिनों ने उनके चरन छूकर मेरी मोटर की ओर पैर बढ़ाया, उस समय मैंने यह बात अच्छी तरह देखली कि वे दोनों कहार पुन्नी और मुन्नी को नज़र गड़ा कर देख रहे हैं!

सुकुमारी ने कहा—"बारिष्टर साहब को पुन्नी-मुन्नी का सारा हाल मालूम हो चुका है। यहां तक कि लूकीलाल के मुकदमे का हाल भी वे जान गये हैं और यह भी वे सुन चुके हैं कि नेक चलन पुन्नी और मुन्नी ने जन्म भर तुम्हारी सरन में रहने की प्रतिज्ञा की है। यह सब हाल जेलर साहब से जानकर बारिष्टर साहब ने यह तय किया है कि दोनों भाइयों में बड़े चुन्नी के साथ पुन्नी का और छोटे खुन्नी के साथ मुन्नी का ब्याह कर दिया जायगा।"

इतने ही में चुन्नी ने आकर मोटरगाड़ी का दरवाज़ा खोल दिया और पुन्नी मुन्नी अन्दर पाकर सामने की बैठक पर बैठ गई। उनके बैठने पर चुन्नी ने बाहर से पूछा—"सरकार ने पूछा है कि डाक गाड़ी में अभी ढाई-तीन घंटे की देर है, इसलिये अगर गंगा नहाने की इच्छा हो तो सरसैयाघाट चला जाय।"

यह सुनकर मैंने पोटली में से निकाल कर दस रुपये पुन्नी के हाथ पर धरे और कहा कि—"इसे चुन्नी को देकर कहदो कि दो रुपए के पैसे और पाठ रुपये की मिठाई लेली जाय और गंगाजी चला जाय।"

यह सुनकर पुन्नी ने रुपए चुन्नी के हाथ में दे दिये और संदेसा कह दिया। इसके बाद वहां से दोनों मोटरें रवानें हुई, आगे मेरी मोटर थी और उसके पीछे वाली पर बारिष्टर साहब और भाईं निहालसिंह थे।