पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १७८ )
खूनी औरत का


अब इसके बाद क्या हुश्रा ? क्या यह भी मुझे लिखना होगा ? अस्तु, सुनिए -- बैसाख सुदी पंचमी को मेरा और दशमी को पुन्नी तथा मुन्नी का विवाह होगया और मैं सुकुमारी बीबी को रुलाकर अपने प्राणपति की कोठी में आगई। यहां पर इतना और भी समझ लेना चाहिए कि मेरे चचा ने ठीक समय पर आकर मेरा सम्प्रदान कर दिया था।



॥ इति श्री॥



इस पुस्तक के १७ फार्म श्री सुदर्शन प्रेस वृन्दावन में छपे थे। और १८ से अन्त तक के फार्म और रंगीन टाइटिल पेज बम्बई भूषण प्रेस मथुरा में छपे हैं।