राजकुमारी।
सचित्र-सामाजिक-उपन्यास। मूल्य एक रुपया।
यह उपन्यास भी अपने ढंग का निराला ही है। अब दूसरी बार बड़ा उत्तमता से छापा गया है और इसमें "राजकुमारी" का रंगीन चित्र तो ऐसा दिया गया है कि वैसा सुन्दर चित्र बाज़ार में चार आने में भी न मिलेगा। इस उपन्यास की प्रेम लीलाएं और ऐयारियां बड़ी ही अनोखी है। इस उपन्यास के पढ़ने वाला इसमें भाग्य का अद्भुत खेल दखेंगे। विद्वान लोग भाग्य को मनुष्य के जीवन का एक प्रधान अंग मानते हैं। यह वात अक्षर अक्षर सत्य है। क्योंकि संसार में प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन काल में किसी न किसी समय भाग्य के चक्र में अवश्य ही पड़ना पड़ता है। बस, इस उपन्यास में दैव, दिए, भागधेय, भाग्य, नियति, विधि, या किस्मत,—जो कुछ किजिए, वे सब मूर्ति धारण करके अपना अद्भुत और भयानक कौतुक दिखलाने लग जाते हैं। इस उपन्यास के पढ़ने से आपको यह बात भली भांति निदित हो जायगी कि भाग्य के फेर में पड़कर मनुष्य को कहां तक भले और बुरे काम करने पड़ते हैं, तथा भले आदमियों को भी इसके चक्र में फंसकर किस भांति दुःख के दिन काटने पड़ते हैं। जो लोग भाग्य को कोई चीज़ ही नहीं समझते वे भी एक न एक दिन इसके चक्रव्यू में पड़कर सारी चौकड़ी भूल जाते हैं। ऐले महामहिमान्वित "भाग्य" में छोटे को बड़ा और बड़े को छोटा कर देने की कैसी अद्भुत और अलौकिक शक्ति है, यह इस उपन्यास के पढ़ने से भली भांति मालूम हो जायगा। तब पाठक यह बात मजे़ में समझ जांयगे, कि इस उपन्यास में कहे गए–राजा हीराचन्द्र,मानिक सुकुमारी, ब्रह्मचारी रामानन्द, दीवान राम लोचन, जमना, हुसैनी, सिद्ध तपस्वी इत्यादि पात्रों को उनके भाग्य ने क्या क्या तमाशे दिखलाए, यह बात इस उपन्यास में पढ़कर पाठक चकित हो जायंगे। इसमें धूर्तता, बदमाशी, नमकहरामी, जालसाजी और विचित्र स्वर्गीय प्रेम तथा गुप्त रहस्य की अद्भुत लीलाएं इस ढंग से लिखी गई हैं कि पढ़ने वालों को इसके पढ़ने से एक अपूर्व और अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति होगी।