उपम्बादों का स्थापन। तारा व क्षत्रकुल-कमलिनी । ऐतिहासिक उपन्यास [ तीन हिस्सों में ] मूल्य-डेढ़ रुपया। तारा उपन्यास पर सहयोगी, सुयोग्य - पत्रसम्पादकों की सम्मतियां- . ___ हिन्दी बंगवासी, ६ अप्रैल, लन् १६०३ ई "उपन्यास 'मासिक पुस्तक' है। काशीसे (अबवृंदावनसे) निकलती है । इसने अब तीसरे वर्ष में पांव धरा है । हर महीने अपनी बांकी छटा दिखा कर ग्राहकों का मन चुरान में कोर कसर नहीं करती। जब एक उपन्यास पूरा होजाता है, तो एक रंगीन टाइटिल पेज भी आता है। अभी "तारा" नामक उपन्यास खतम हुश्रा है। उसे पढ़कर चित्त में अनेक तरह के भाव लहर लेने लगते हैं । कमी हँसी आती है और कभी रुलाई, कभी क्रोध उमड़ता है और कभी घृणा, फिर इधर "तारा" की चिट्ठी पढ़ कर चित्त एक बार अनेक प्रकार के ख्यालों में उलझ जाताहै । तारा के साहस प्रततथा स्वामिभक्ति का परिचय चिट्ठी पढ़ने ही से मालूम होगा। इस मनमोहिनी पुस्तक के संपादक श्री किशोरीलाल गोस्वामी है।
- चपला वा नव्यसमाजचित्र
सचित्र सामाजिक उपन्यास : चार भागों में-मूल्य दो रुपये। यह उपन्यास बड़ा ही रोचक है । कई रंगों से छपा हुश्रा, घपला का सुन्दर चित्र भी इसमें लगा हुआ है । इस उपन्यास में काशी मुख्य स्थान रक्खा गया है । साथ ही, लखनऊ, गाजीपुर आदि का भी जिक्र आया है । इसमें बड़ी बड़ी भयंकर और रोएँ खड़े करने वाली घटनाओं का वर्णन है । उपन्यास हाथ में उठाने पर फिर छोड़ने को जी ही नहीं चाहता है। इसे बनारस का रहस्य ही समझिए । जिसने चपला उपन्यास नहीं पढ़ा, उसने उपन्यास पढ़ने में व्यर्थ समय खोया । चार सौ पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य तिर्फ दो रुपए और डाक खर्च पाठ माने। आप इसे आज ही मंगाइए।