रसूलपुर के थाने में गई थीं, उस गाड़ी और उनके दोनों बैलों का भी कुछ पता नहीं लगा कि वे क्या हुए, या उनपर किसने अपना कब्ज़ा किया। मेरे दरयाफ से यह भी मालूम हुआ कि, 'हिरवा गाऊ की मां हुलसिया भी अपने लड़के के खून होने के तीन चार दिन बाद पलेग से मर गई और हिरवा की नौजवान जोरू झलिया न जाने कहां चल दी। इसके अलावे, तुम्हारे इजहार में कहे हुए--हिरवा, नब्बू,घाना,परसा और कालू-ये पांचों तो खून हो हो चुके थे और इन पांचों के अलावे बाकी के वे जो-घौसू, बहादुर, तिनकोढ, हेमू, कतलू. रासू और लालू बगैरह-आम आदमी थे, उनका भी पता मैने लगाया; जिसपर मुझे यह मालूम हुआ कि पलेग देवता उन सातों को भी चट कर गए हैं ! केवल इतना ही नहीं, वरन तुम्हारे ये तीनों चरवाहे भी,जिनका नाम ढोंडा, घोंघा और फल्गू था, पलेग की भेंट होगए । फिर मैं सूलपुर के चौकीदार दियानतहुसैन और रामदयाल से भी मिला, पर उन दोनों ने मुझसे यही बात कही, जो कि वे अपने अपने इजहार में कह चुके हैं । अर्थात् उन दोनों ने यह कहा कि, "हां, दुलारी नाम की एक जवान लड़की बैलगाड़ी पर यहां आई थी, जिसे कोठरी में बन्द करके हींगान चौकीदार के साथ अबदुल्ला थानेदार उस लड़की के गांव पर पांच पांच खून का पता लगाने उसी लड़की की बैलगाड़ी पर चढ़कर गए थे । पर रात को वे दोनों इक्के पर वापस आए और तब अबदुल्ला ने इस चौकी पर के हम छाओ चौकीदारों को बुलाकर यह हुकुम दिया कि, 'अब तुम सब अपनी कोठरी में चले जाओ और जबतक तुम लोगों को हींगन चौकीदार या मैं न पुकारू,तबतक अपनी कोठरी से हरगिज बाहर न निकलना । क्योंकि अब मैं उस खूनी औरत से खून कबूल कराऊंगा, इसमें मुमकिन है कि वह खूब शोर गुल मचाऐ; इस लिये तुमसभी को यह हुकुम दिया जाता है कि उस औरत
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