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श्री:
खूनी औरत‌
का
सात खून‌

 

 

जासूसी उपन्यास!

 

 

पहिला परिच्छेद।
घोर विपत्ति!

"आकाशमुत्पततु गच्छतु चा दिगन्त—
मम्मोनिधिं विशतु तिष्ठतु वा यथेच्छम्॥
जन्मान्तरार्जितशुभाशुभकृन्नगणां,
छायेव न त्यजति कर्मफलानुबन्धः॥"

(मोतिमञ्जरी)

दुलारी मेरा नाम है और सात सात खून करने के अपराध में इस समय मैं जेलखाने में पड़ी पड़ी सड़ रही हूं। मैं जाति की बाह्मणी हूं, पर कौन सी बाह्मणी हूँ, यह बात अब नहीं कहूंगी। मैं अभी तक कुमारी हूँ और इस समय मेरा बयस सोलह बरस के लगभग है।

कानपुर जिले के एक छोटेसे गांव में मेरे माता-पिता रहते थे, पर किस गांव में वे रहते थे, इसे अब मैं नहीं बतलाना चाहती, क्योंकि जिस अवस्था में मैं हूँ, उस दशा में अपने बैकुण्ठवासी माता-पिता का पवित्र नाम प्रगट करना ठीक नहीं समझती।