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खूनी औरत का



साढ़े तीन महीने से मैं जेल में पड़ी हूं। जिस समय मैं अपने गांव से चलकर एक दूसरे गांव के थाने पर गई थी, यह अगहन का उतरता महीना था, और अब यह फागुन मास बीत रहा है।

मेरा नाम इस समय कई तरह से प्रसिद्ध हो रहा है। कोई मुझे "खूनी औरत" कह रहा है, कोई "सात खून" पुकार रहा है, कोई "रणचण्डी" बोल रहा है और कोई "चामुण्डा" बतला रहा है! बस, इसी तरह के मेरे अनेकों नाम अदालत और जेलखाने के लोगों की जीभों पर नाच रहे हैं और इन्हीं नामों से मैं प्रायः पुकारी भी जाने लगी हूँ।

यह सब तो है; पर ऐसा क्यों हुआ और सात सात खून करने का अपराध मुझे क्यों लगाया गया, यही बात मैं यहां पर कहूंगी।

मैं अपने गांव से चल कर दूसरे जिस गावं के थाने पर खून की रिपोर्ट लिखाने गई थी, उसी गावं पर एक अंग्रेज अफसर के सामने मेरा बयान कानपुर के कोतवाल साहब ने लिखा था। फिर वहां से मैं पुलिस के पहरे में कानपुर लाई गई और कोतवाली की कालकोठरी में रक्खी गई। फिर कई दिनों के बाद जब मजिष्टर साहब के सामने मेरा बयान हो गया, तब मैं जेलखाने भेज दी गई और कुछ दिनों पीछे दौरे सुपुर्द की गई। कई पेशियां दौरे में भी हुईं और महीनों तक मुकद्दमा चलता रहा। अन्त में मुझे फांसी की आज्ञा सुनाई गई और मैं जेलखाने की कालकोठरी में पड़ी पड़ी सड़ने लगी, पर यह बात मुझे स्मरण न रही कि किस दिन मुझे फांसी पर लटकना होगा। उस दण्डाज्ञा के होने के दस पन्द्रह दिन पीछे मैंने एक दिन जेलर साहब से यों पूछा कि,——"मुझे किस दिन फांसी होगी?" इस पर हंस कर उन्होंने यह जवाब दिया कि,——"अभी उसमें देर है; फांसी की तारीख पहली मई है, पर तुम्हारे किसी मददगार बैरिस्टर ने जजसाहब के फैसले के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील दायर की है; इसलिये अब, जबतक