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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/३१

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सात खून ।

यह सुन और जरा सा मुस्कुराकर मैने कहा,-"लेकिन मेरा इस समय का लिखाया हुआ थयान लो अब हाईकोर्ट में पेश हो होगा नहीं, फिर आप को मेरा फिर से,नए सिरे से मान लेने का कष्ट उठाना चाहते हैं ? "

मेरी ऐसी बात सुनकर भाई दलिह ने बड़ी नदंबा थे कहा,-"बेटी, तुम इन मामलो के एचपंच को नहीं समझ सकतीं, इसलिये अय व्यर्थ हठ करके समय को म खोवो और अपना इजहार लिखाना शुरू कर दो।"

यह सुनकर मैं बोली,--"अच्छी बात है, लिखिए, पर इतमा याद रखिए कि इस समय जो कुछ मैं लिखवाऊंगी, इसके साथ मेरे पहिले के दिए हुए तीनों बयान पिलकुल मिल जायंबे और सिवाय परिश्रम के, आपके हाथ कुछ भी ब लगेगा।

भाईजी ने कहा,--"नहीं, यह बात नहीं है; मेरे हाथ सय कुछ लगेगा, क्योंकि यदि तुम्हारे इस समय के लिअचाए हुए बयान के साथ तुम्हारे पेश्तर के तीनों पयाम मिल जायं खो समझ लो कि मैने बाजी मार ली और तुम बेदाग छूट गई ! बस, इसी लिये तो मैने बार बार सुमसे यह बात कही ही है कि तुम अरा अपना चित्त खूप ठिकाने कर के, तप अपना बयान लिखवालो।"

मैं बोली,--"तो अच्छी बात है, आप लिखिए, मैं कहती हूं।"

वे बोले,--"अच्छा, जरा सा ठहर जाओ; क्यों कि मैं तो कलम पकड़े हुए लिखने के लिए तयार बैठा ही हूँ। पर जरा सा तुम और ढहर जाओ और मेरे अफ़सर को बाजाने दो । अम्म, उनके आजाने पर उन्हीं के सामने मैं तुम्हारा इजहार लिखूंगा। उन्होंने ठीक साढ़े ग्यारह बजे वहां पहुंच जाने की बात कही थी, पर अब बारह यज्ञा चाहते हैं ! अस्तु, फोई चिन्ता नहीं, वे अब आते ही होंगे।"

मैंने पूछा,--" आखरी अपने अफसर को यहां गाने का कों कष्ट दिया ?"