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खूनी औरत का

भाईजी ने कहा,--'मैंने नहीं दिया, लिक इस पष्ट को उठाना उन्होंने स्वयं स्वीकार किया। अच्छा, इस बात को भी तुम सुन लो । बात यह हुई कि फल रात को मैं अपने अफसर, अर्थात् जासूसी महकमे के छोटे साहब से मिला और तुम्हारा सारा हाल उन्हें सुना कर मैने उनसे यों कहा कि, 'वह लड़की बिलकुल बेकसूर है।' यह सन कर उन्होंने मुझसे यों कहा कि, 'अच्छा, कल ग्यारह बजे मैं खुद यहां चल फर इस लड़की का इजहार लिखंगा और अगर बाकई माह बेकसूर हुई तो मैं अपनी रिपोर्ट अपने बड़े माहप के पास भेदूंगा और वे उस रिपोर्ट पर अपनी राय लिख कर हाईकोर्ट के जजों के पास भेज देंगे, जिसका नतीजा यह होगा कि इस रिपोर्ट पर खूब अच्छी तरह गौर करके हाई कोर्ट इस लड़की को बेगुनाह समझ फर छाड़देगी।"

भाईजी इतना ही कहने पाए थे कि एक लम्बे कद के साहब (अंगरेज)पहुंचे। उन्हें देखते ही भईया जी और बैरिस्टर साहब उठ खड़े हुए और जन प्राइव यीच की कुर्सी पर बैठ गए, तो उनकी दाहिनी ओर भाई दयालसिंह और बाईं गोर बारिपुर बाहर बैठगए । यहां पर यह भी कह देना उचित होगा कि उस समय मैं भी उठ खड़ी हुई थी गौर उम तीनों महाशयों के बैठ जाने पर बैठ गई थी।

अस्तु, कुछ देर तफ भली भांति मेरो ओर देख कर उन अंगरेज अफसर गे भाईजी से कहा,--"अच्छा, अब आप इस 'औरत का इजहार हिन्दी में लिखें, पर मैं अङ्गरेजी में लिखूंगा और फिर पीछे अपनी गय के साथ उसे बड़े साहब के पास भेज दूंगा । हां, इस औरत के ये तीनों बयान कहां हैं, जो इस पुलिस, मजिस्ट्रेट भौर जज के आगे दिए थे ?"

यह सुन कर बारिस्टर साहब ने अपने पावर में से फीता। बंधा हुआ एफ पुलिंदा निकाल कर खोला और फिर उसे