पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/३५

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सात खून।


स्वीकार करती हूं कि उस गांव के बाह्मयों में कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की संख्या सबसे जादे है।

मेरे माता-पिता का क्या नाम था, यह बात भी अदालत को मालूम होगई है, जिसे मैने भी सकारा है, पर अब इस अवस्था में पड़कर मैं निगोड़ी अपने उन वैकुण्ठवासो माता-पिता के पवित्र नाम को अपने अपवित्र मुख से नहीं कहना चाहती।

मेरे पूज्य पिताजी की अवस्था मरने के पहिले पचपन वर्ष की और मेरी माता की चालीस बरस की थी और मेरी सोलह साल की है। मेरे प्यारे पिता अच्छे पण्डित थे, पर पुरोहिताई का काम छोड़फर वे खेती-बारी करते थे। मेरी माता भी पढ़ी लिखी थी, इसीसे पिता-माता की शिक्षा पाकर मैं भी कुछ थोड़ा बहुत पढ़ लिख गई हूं। मेरे पिता का निज का कच्चा मकान था। मकान के साथ एक छोटी सी फुलवारी भी थी, दो तीन गौ-भैंसे भी थीं और चार जोड़ी बैल और चार ही हरवाहे (बैल हांफने भौर हल जोनवाले) भी थे। बड़े सुख-चैन के साथ मेरे माता-पिता का, और उन्हीं की बदौलत मेरा भी दिन बीतता जाता था और यदि सच पूछा जाय तो कोई भी कष्ट न था। किन्तु बैरो विधाता से हमलोगों का वह तुच्छ सुख भी न देखा गया और उस निगोड़े मे हमलोगों के सारे भानन्द पर बज्र गिरा दिया!

बात यह हुई फि फातिक को पूमो बहा कर मेरी माता पीड़ित हुई। उन्हें पड़े बेग से जनर चढ़ आया और तीसरे दिन उनके गले में मिली निकल आई ! यह देखकर मेरे पिता बहुत घघराप और तब हमलोगों ने यह जाना कि यह तो पलंग है !

मेरे छोटे से उस गांव में वैद्य ठाकुर तो थे नहीं, इसलिये उधर तो पिताजी किसी वैद्य को भोज में सबेरे ही कानपुर गए और इधर दोपहर होते होते मेरी प्यारी माता चल बसीं । उस समय गांव की कई स्त्रियां भागई थी और उन्हीं सभी से मेरी