पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/३८

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खूनी औरत का।

हाय, उन अभागों की यह बात सुनकर मैं पछाड़ खाकर वहीं गिर गई और मूर्छित होगई । मैं कब तक ये सुध रही, यह तो नहीं कह सकती, पर जब मुझे होश हुआ तो मैने क्या देखा कि मैं अपने घर की एक कोठरी में चारपाई पर पड़ी हुई हूँ और मेरे पास दूसरी खाट पर उसी हिरवा नाई की मां हुलसिया पड़ी हुई नाक बजा रही है, जिसे फि मैने कानपुर से वैद्य बुला लागे के लिए चार रुपए दिए थे।

यह सब देनफर में अपनी खाट पर उठकर बैठ गई और हिरवा की मां को पार चार पुकारने लगी । पर वह निगोड़ो खो हांक देगे पर भी तनिक भी मिनकी, बरन और जोर जोर से नाक बजाने लगी। यह देखकर मैं उठी और टिमटिमाते हुए दीए की टेम को ठीक करके फिर अपनी चारपाई पर जा बैठी। उस समय अपने माता-पिता गौर साथ ही अपनी घोर विपत्ति का स्मरण करके मैं खूब जोर जोर से चिल्ला कर रोगे लगी।

योही मैं जाने कितनी देर तक आप ही आप रोया की, इतने ही में मैने क्या देखा कि वही हिरवा नाई, जिसकी उम्न बीस- बाईस बरस से लादे न थी और जो देखने में महा कुरूप था, मेरी चारपाई पर आफर बैठ गया और मेरा एक हाथ पकड़कर अपने मैले दुपट्टे से मेरा आंसू पोछने लगा!!!

यह तमाशा देख कर एक बेर तो मैं बड़े जोर से चिहुंक उठी, पर तुरत ही उसके हाथ को झटकार और उसे अपनी चारपाई पर से ढकेल कर बड़े क्रोध से उसकी भोर निहारती हुई यों कहगे लगी,-" क्यों रे, हिरवा! तूने और तेरी मां ने बराबर मेरे यहां के जूठे टुकड़े खाए हैं, तब यैसी दशा में तू पा समझकर मेरी चार- पाई पर आ बैठा और क्या सोचकर तूगे मेरा हाथ पकड़ा ?"

"मेरी ये बातें सुनकर यह खिलखिला कर हंसने लगा और यों बोला कि,-" दुलारी, तू बड़ी सुंदर है और मैं कई बरस से तेरे