पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/३९

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सात खून ।

रूप-रंग को देख देख कर भीतर ही भीतर भुमा जा रहा हूं। अब तक तो तेरे मां-बाप के डर से मैं अपमा मत मारे बैठा रहा, पर अब मुझसे तेरे बिना छिनभर भी नहीं रहा जाता । सो, तू मेरी बात सुगीर मेरे गले से लग जा । देखा, जो सीधी तरह मेरी बात मान ले, तो अच्छा ही है, नहीं तो मैं जबरदस्ती तेरी माता आबरू बिगाड़ दूंगा मौर सारे गांव में तेरी बदनामी का ढील पीट कर तुझे मिट्टी में मिला दूंगा। इस समय तू अकेली है और अब तेरे सिर पर कोई भी नहीं है, इसलिये अपनी अवस्था पर अच्छी तरह विचार करके तू मेरा कहना मान ले और मेरे हिये को लगी को बुझा दे।"

उस दुरात्मा पातको की ऐसी खोटी बातें सुनकर मेरे तलुए से चोटी तक आग सी लग गई और मारे क्रोध के मैं भभक उठी। एक तो मैं अपनी माता--विशेषकर अपने पिता के शोक में बावली हो ही रही थी, उस पर निगोड़े हिरषा की पाप-कथा सुनकर तो मैं और भी पागल हो उठी और झट से अपनी बार के नीचे उतरकर खड़ी होगई । फिर मैने दांत पीस फर उस दुष्ट हिरवा से पों कहा कि,"बस, अब तू चुपचाप यहांसे अपना काला मुहं कर, नहीं तो तेरे लिये अच्छा न होगा।"

यह सुनकर वह बेहया फिर खूब उठाकर हंसा और कहने लगा,--"अब तो मैं तभी यहांसे जाऊंगा, जय मामा जी ठंडा कर लंगा।"

बस, महाशय ! उसके मुहं से इतना निकलता था कि मैंने उछलकर इस पातकी को धर्ती में परक दिया और उसके कलेजे पर सवार होकर ऐसे जोर से उसका गला दबाया कि फिर पर जरा भी न बोल सका । योही देर तक मैं उसके गले को भरजोर दयाए रही। फिर मैं उसकी छाती पर से उतर कर दूर जा खड़ी हुई और उसकी भोर बिना देखे ही यों कहने लगी,-"बस, रे