पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/५७

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सात खून ।


मेरी बात सुन और मुझे सिर से पैर तक खूष अच्छी तरह घूर कर उस बदजात चौकीदार ने मुस्कुराकर यो कहा,-"अय आनसाहिवा! तुम किस गांव को उजाड़ फर इस धीराने को आबाद करने आई हो ? "

उस हरामज़ादे की ऐसी बात-चीत सुनफर यह मैं समझ गई कि यह मुंआं बड़ा पाजी मुसलमान है । पर खैर, इसकी बातें जानसुनी करके मैं सामनेवाले एक छोटे से छप्परदार कोठे के अन्दर घुस गई और वहां जाकर मैने क्या देखा कि, 'एक तख्तेपोश के ऊपर दो-तीन तकियों का ढासना लगाए हुए एक नौजवान मुसलमान बैठा हुआ हुक्का गुड़गुड़ा रहा है !"

उसे देखकर मैने उससे यों पूछा,-" इस थाये के अफसर आप ही हैं?"

मेरी बोली सुनकर उस मियां की मानो पिनक दूर हुई और उसने मेरी ओर देख और दो-चार जम्हाई देकर हंस दिया! इतने में वह गोंडइत भी उसी कोठे में आगया, जिसके साथ मेरी भभी बात-चीत हुई थी।

सो, उसने थानेदार की ओर देख और खूब खिलखिला कर यों कहा,--"लीजिए, जनाब ! आप भी कैसे किस्मतबर पशर हैं फि सुबह-सुबह यह कोहफाफ़ की हर माप ही आप आप के पास आ टपकी !

उस मुएं चौकीदार की वैसी बात सुनकर थागेदार खूप कहकहा लगाकर हंस पड़ा और बोला,-"अजी म्यां, तो इसमें ताज्जुब की क्या बात हुई ! बकौल शख्से कि, 'शक्कर खोरे को शकर और मूंजी साले को टक्कर मिला ही करती हैं। ' उसी तरह मुझे भी आज यह मिसरी की डली दस्तयाच हुई !"

यों कहकर थानेदार ने मेरी ओर बुरी तरह आंखें मटकाकर यों कहा,-"तुम कहां से आ रही हो, दिलरुवा !"

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रा०