पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ५६ )
खूनी औरत का


मैं धन शैतानों, यानी चौकीदार और थानेदार के बर्ताव को देखकर मन ही मन जल-भुन कर खाक होगई थी, पर फिर भी बेमौका समझ कर अपना क्रोध भीतर ही भीतर पी गई और थानेदार से यों कहने लगी,-" मेरे घर में आज की रात पांच पांच खून होगए हैं, उन्हीं की रिपोर्ट लिखाने मैं खुद ही हाजिर हुई हूं। इसलिये आप कृपा कर मेरा ययान लिख लीजिए और मुझे जिले की कचहरी के हाकिम के पास ले चलिए।"

मेरी बात सुनकर थानेदार खूब ठठाकर हंसा और सीधा बैठ फर यों कहने लगा,--" वल्लाह, तुमने तो जान साहिबा! आते ही मजाक शुरू कर दिया ! या रच ! ऐसा तो मैने न कभी देखा और न सुना दी कि खुन खूमो शाने पर हाजिर होकर अपने फेल की रिर्पोट लिखाता हो ! इसलिये, प्यारी जान! तुम मुझसे दिल्लगी बाजी न करो और जिस मतलब से तुम मेरे पास आई होवो, उसे विला-तकल्लफ मुफस्सिल गयान कर जाओ। आओ, मेरे पास इसी तरुतेपोश पर आकर बैठ जाओ।"

उस भिगोड़े थानेदार का ऐसा कमीनापन देख कर मैं बहुत ही झल्लाई, पर फिर भी मैने लोहू का घंट पोकर उससे यों कहा- "साहब, मैं एक भले घर की लड़की हूं, और आज की रात मेरे घर में पांच पांच खून होगए हैं। उसी की रिपोर्ट लिखाने मैं खुद यहां हाजिर हुई हूं। इसलिये पहिले आप मेरा इजहार लिन लें, फिर मेरे घर जाकर उन पांचों लाशों का मुलाहिजा फरें । बस,अब मुझे छुट्टी दें, तो में भी वहां पहुंच जाऊँ।

मेरी बात सुनकर उन चौकीदार गौर थानेदार साहबो के होशोहवास दुरुस्त होगए और थानेदार ने मेरी ओर तिरछी चितवन से तककर यों कहा,--"वल्लाह, तुम्हारी तो सभी पाते एक अजीबोगरीब पहेलो नज़र आती हैं ! अजीबी! कहीं भले घर की लड़कियां भी खून-खराबा किया करती हैं ? "