पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६३ )
सात खून।


बस, इतने ही में हाथ में लालटेन किये हुए वही हींगन चौकी दार मेरी कोठरी के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ और रामदयाल को विदा करके ताला खोलते खोलते मुझले यों कहने लगा,-" चलो, थी ! तुमको थानेदार साहब बुला रहे हैं। खून सो तुमने वाकई पांच जरूर किए हैं, लेकिन कुछ पर्वा नहीं। अगर इस वक्त तुम थानेदार की और मेरी भी दिली आरजू पूरी कर दोगी, तो हमलोग चुपचाप इसी रात को तुम्हें यहां से भगा देंगे। फिर जहाँ तुम्हारा जी चाहे, वहां चली जाना, लेकिन जब तक इस खून का हंगामा न मिट ले, तबतक अपने तई किस्सी पोशीदा जगह में खूब छिपाए रहना । मगर जो तुमको कोई छिपने की साकूल जगह न दिखलाई दे, तो वैसा कहो, क्योंकि वैसी हालत में खुद मैं तुम्हें अपने साथ लेकर कलकत्ता या बंबई भाग चलूंगा और फिर किसी साले के हाथ न आऊंगा। बस, तब तुम मेरी बीबी बनकर रहना और मैं तुम्हारा स्वामी बन कर रहूँगा।"

उस निगोड़े और कलमुंह मियां छीगन की ऐसी गन्दी बाते सुनकर मेरे तलुवे से नीचे तक आग सी लग गई, किन्तु बेमौका समझकर मैं उस क्रोध को मन ही मन दबा गई और स्त्रियो को स्वाभाविक माया का कुछ थोड़ा सा विस्तार करके तुरन्त यों कहगे लगी,-"मियांजी! तुमने जो कुछ मुझसे अभी कहा है, उसे मैं मंजूर करती हूं; पर जब कि तुम मुझे अपनी बीवी बनाया , चाहते हो, तो फिर अपनी उसी बीवी को थानेदार के हाथ में क्यों देते हो

मेरी ऐसी विचिन्न बात सुन और अपने हाथ की लालटेन से मेरे चेहरे की ओर देख कर उस कलूटे हंसकर यों कहा,- "आह, दिलरुषा! तो यह बात तुमने मुझसे पेश्तर क्यों न कही?"

मैं बोली,--" पहिले तुम्हीने अपने जी को बात मुझसे कब कही थी ? अस्तु, सुनो हींगनमियां ! तुम अब मेरे जी के असली

( ९ )रा०