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खूनी औरत का


चौकशी करा । सुनो, मैं न तो खूनी और रा हूँ और न कोई खून ही मैंने किया है। देखो, जो मुझे भागना ही होता तो मैं आप ही आप यहां क्यों आती ? फिर अबदुल्ला और हींगन के मरते हो मैं अपना रास्ता लेती, तुम सभी के पास कों जाती इसलिये भाइयों, मैं यहां से कहीं भागकर इस खून के अपराध को अपने ऊपर नहीं लिया चाहती । तुमलोग बेफिक्र हो, क्योंकि मैं कहीं भागने वाली नहीं हूं। हां, यह तुम कर सकते हो कि बाहर से हो मेरा पहरा दो और अपनी नौकरी बजाओ। सुनो, अब रातभर इस कोठरी को कुण्डी मैं कभी न खोलूंगी । हां, सबेरा होने पर जैसा मुनासिब समझूंगी, वैसा करूंगी।"

बस, इसी तरह मैंने उन सभी को बहुत कुछ समझाया, पर ये न माने और बार बार किवाड़ में धक्का देने और सांकल खोल देने के लिये कहने लगे।

आखिर, जब वे सब बहुत ही उपद्रव मचाने लगे, तब मैंने उस भरी हुई बन्दूक को उठा और उसकी नली खिड़की के जङ्गले के बाहर करके यों कहा,--"बस, बहुत हुआ । अब था तो तुम सब इस दरवाजे के पास से हटजाओ, या मरो। देखो, इस भरी हुई बन्दूक की ओर जरा देखो और इस बात को सही जाजो कि अब जो कोई इस कोठरी के दरवाजे के पास आवेगा, उसपर जरूर मैं बन्दूक दाग दूंगी। इसमें पीछे चाहे जो हो, पर इस समय तो मैं अवश्य ही गोली मार दूंगी।"

मेरा ऐसा रंग--ढंग देखकर वे छओं चौकीदार रस कोठरी के दरवाजे से हटकर उस जङ्गलेदार खिड़की के सामने,-पर जरा दूर आकर खड़े होगए और, रामदयाल मिश्र ने उन सभी के आगे आकर मुझसे यों कहा,--"क्यो, दुलारी, तुम क्या इस समय अपने होशोहवास में मुतलक नहीं हो ? "

मैं बोली,--"क्यों ? ऐसा प्रश्न आप क्यों करते हैं ? बताइए,