मैने बदहोशा को कोनसा यात को ?"
वे बोले,-"और क्या करोगी ! इस समय के तुम्हारे रंग-ढंग को देखकर तो हम लोगों के देवता कूंच कर गए हैं ! अरे, पांच खूब तो तुम्हारे मकान पर हुए और दो यहां ! अब तुम्ही बताओ कि यह सब देख सुनकर हमलोग का समझे ? "
मैंने पूछा,--"इसमें समझने की कौनसी बात है ?
वे शोले,--'यहा कि जैली लीला मैं देख रहा हूं, उससे तो यही जी में आता है कि घर पर भी वे पांच खून तुम्ही में किए और यहां पर भी ये दो हत्याएं लिया तुम्हारे और किसी ने नहीं की!"
मैं बोला,--"यह आपको अधिकार है कि आपके जो जी में आवे, सो आप समझ; पर सुनिए तो सही,-मैं तो भागी नहीं है, यहीं मौजूद हूं; इसलिये आपलोग बाहर से ही मेरा पहरा दीजिए और ऐसा उपाय फीजिए कि जिसमें पंच्छो की तरह उड़कर मैं फहीं भाग न माऊं।"
ये पोले,--'इसलिये तो चाहता हूँ कि तुम होश में आकर सीधी तरह इस कोठरी का दरवाजा खोलो । "
मैं बोली,--"क्यों ?"
वे बोले,--"यों कि अब इस समय हमलोग तुम्हें उसी कोठरी में बन्द करना चाहते हैं, जिसमें कि तुम दिन के समय बन्द रखी थीं।"
मैं बोलो,--"और जो मैं इसी कोठरी में रातभर बन्द रखी जाऊं,क्यो क्या हर्ज है ? "
वे होले,-- देखो, और इस बात पर तुम आपही खूब गौर करो कि यह कोठरी हम लोगों के रहने की है। इसी में हमारे खाट बिछौने कपड़े-लते और खाने पीने के सारे सामान धरे हुए है! अब तुम्हीं सोचो कि इस हाड़तोड़ जाड़े में बिना ओढ़ने के हमलोग ओस में कैसे रह सकेंगे ? "
मैं बोली,--"यह तो आप ठीक कह रहे हैं, और अवश्य