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पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/७९

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सात खून


मरदों के खून कर डाले !!!"

इन सब बातों पर मैने कान न दिया और अपनी बंदूक को भीतर खैंच कर बगल में खड़ी कर दिया। फिर एक मूढ़ा मैं खैंच लाई और उसी पर खिड़की के सामने बैठ गई।

बाद इसके, मैने या देखा कि, ये सच चौकीदार उसी सामने वाले पेड़ के नीचे पड़े हुए तखत पर बैठ कर आपस में इस बात को सलाह करने लगे कि, 'अब क्या करना चाहिए !' योंही देर तक आपस में छूथ बोलमट्ठा करके उन सभोंने यह निश्चय किया कि,'रामद्यामिश्र तो हक चौकीदार के साथ इस बात की रिपोर्ट करने कानपुर जाय, और बाकी के चारों आदमी मेरी चौकसी करें।'

जब यह सलाह आपस में पक्की हो गई, तब रामदयाल मिश्र मेरी खिड़की के पास आए और यों कहने लगे,-"दुलारी, तुम्हारे भाग्य में क्या लिखा है, इसे तो विधाता ही जाने क्योंकि बात बड़ी वेढब हुई है ! खैर, जो कुछ तुम्हारे हरम में थदा होगा, यह होगा। अब यह सुनो कि मैं कानपुर जाता हूं और वहां तक मुझसे हो सकेगा, वहां तक इस यात को मैं कोशिश करूंगा कि जिनमें कोई अंगरेज अफसर यहां आयें। किन्तु यदि कोई अंगरेज अफसर म भी आवेंगे तो कानपुर के कोतवाल साहब तो अवश्य ही आवेंगे। यदि कोतवाल साहव आ गए, तो भी तुम उनसे किसी वैसी बात को शङ्का न करना; क्योंकि वे बहुत ही सज्जन और दियानतदार मुसलमान हैं।"

यह सुन कर मैने कहा,--"भाई साहय, आपका कहना ठीक है; पर जहां तक हो सके, आप किसी अंगरेज अफसर के लाने की जरूर कोशिश करिएगा; क्योंकि यहांका एग-ढंग देख फर हिन्दुस्तानियों के ऊपर से मेरा विश्वास अश एक दम उठ गया है। यह बात आप भली भांति समझ लें कि चाहे मैं बिना अन्न