शफटा। वृटिश का राज में औरत का इज्जट कोई गई लेने शकटा! टुम बेखौफ़ डरवाजा खोलो।"
यह सुनकर मैने तुरन्त दरवाजा खोल दिया । यस, ज्योंही मैं दरवाजे के बाहर हुई, त्योंही साहब बहादुर ने कहा,-"ओ औरट ! टुम खून का अशामी है, इश घाशटे टुमको हथकड़ी पहनना होगा।
यह सुनकर मैने कहा,--"नहीं, साहब! आप ऐसी बात न कहिए और मेरा बयान सुने बिना मुझे ऐसा इलज़ाम मत लगाइए, क्योंकि मैने कोई खून-ऊन नहीं किया है। "
इस पर साहब बहादुर ने कहा,--'आलबट, टुम ठीक बोलटा हाय; पर जब टक टुम बेकसूर साबिर नहीं होगा, टब टक टुमको हठकड़ी पहरना व कैड में रहना होगा।"
यह सुनकर मैने अपने दोनों हाथ फैला दिए और साहब बहादुर फा इशारा पाकर एक पुलिसअफसर से मुझे हथकड़ी पहना दी। मुझे उसी समय यह मालूम होगया था कि जिन्होंने मुझे हथकड़ी पहराई थी, वे कानपुर के फोतवाल थे।
बस, फिर मैं तो धार सिपाहियों के पहरे में एक और खड़ी कर दी गई और साहय बहादुर और कोतवाल साहब उस कोठरी की ओर चले गए, जिसमें खून हुआ था ।
थोड़ी देर के बाद वे दोनों उस कोठी से बाहर हुए और एक पेड़ की छाया में जाकर साहब बहादुर तो एक मूढ़े पर बैठ गए और सिगार पीने लगे, और कोतवाल साहब एक चारपाई पर बैठकर मुझसे बोले,--"तुम अपना बयान लिखवाओ। "
यह सुनकर भी जब मैं चुपचाप खड़ी रही, तब साहब ने मुझसे कहा,--"टुम बोलटा क्यों गेई ?"
इस पर मैने यों कहा,--"साहब, हिन्दस्तानियों के अत्याचारों को देखकर उन पर से मेरा सारा विश्वास उठ गया है, इसलिये