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देवीदीन बोला तो है न सलाह? रमानाथ–कहाँ जाएँगे दादा, कष्ट होगा।

'माघ का स्नान भी तो करूँगा। कष्ट के बिना कहीं पुन्न होता है. मैं तो कहता हूँ, तुम भी चलो। मैं वहाँ सब रंगढंग देख लूँगा। अगर देखना कि मामला टिचन है, तो चैन से घर चले जाना। कोई खटका मालूम हो, तो मेरे साथ ही लौट आना।'

रमा ने हँसकर कहा-कहाँ की बात करते हो, दादा! मैं यों कभी न जाऊँगा। स्टेशन पर उतरते ही कहीं पुलिस का सिपाही पकड़ ले, तो बस!

देवीदीन ने गंभीर होकर कहा–सिपाही क्या पकड़ लेगा, दिल्लगी है! मुझसे कहो, मैं प्रयागराज के थाने में ले जाकर खड़ा कर दूं। अगर कोई तिरछी आँखों से भी देख ले तो मूंछ मुड़ा लूँ! ऐसी बात भला! सैकड़ों खूनियों को जानता हूँ, जो यहाँ कलकत्ता में रहते हैं। पुलिस के अफसरों के साथ दावतें खाते हैं, पुलिस उन्हें जानती है, फिर भी उनका कुछ नहीं कर सकती! रुपए में बड़ा बल है भैया!

रमा ने कुछ जवाब न दिया। उसके सामने यह नया प्रश्न आ खड़ा हुआ। जिन बातों को वह अनुभव न होने के कारण महाकष्ट-साध्य समझता था, उन्हें इस बूढ़े ने निर्मूल कर दिया और बूढ़ा शेखीबाजों में नहीं है, वह मुँह से जो कहता है, उसे पूरा कर दिखाने की सामर्थ्य रखता है। उसने सोचा, तो क्या मैं सचमुच देवीदीन के साथ घर चला जाऊँ? यहाँ कुछ रुपए मिल जाते, तो नए सूट बनवा लेता, फिर शान से जाता। वह उस अवसर की कल्पना करने लगा, जब वह नया सूट पहने हुए घर पहुँचेगा। उसे देखते ही गोपी और विश्वंभर दौड़ेंगे, भैया आए, भैया आए. दादा निकल आएँगे। अम्माँ को पहले विश्वास न आएगा, मगर जब दादा जाकर कहेंगे हाँ, आ तो गए, तब वह रोती हुई द्वार की ओर चलेंगी। उसी वक्त मैं पहुँचकर उनके पैरों पर गिर पड़ेंगा। जालपा वहाँ न आएगी। वह मान किए बैठी रहेगी। रमा ने मन-ही-मन वह वाक्य भी सोच लिए, जो वह जालपा को मनाने के लिए कहेगा। शायद रुपए की चर्चा ही न आए। इस विषय पर कुछ कहते हुए सभी को संकोच होगा। अपने प्रियजनों से जब कोई अपराध हो जाता है, तो हम उघाड़कर उसे दुःखी नहीं करते। चाहते हैं कि उस बात का उसे ध्यान ही न आए, उसके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं कि उसे हमारी ओर से जरा भी भ्रम न हो, वह भूलकर भी यह न समझे कि मेरी अपकीर्ति हो रही है।

देवीदीन ने पूछा-क्या सोच रहे हो? चलोगे न?

रमा ने दबी जबान से कहा तुम्हारी इतनी दया है, तो चलूँगा, मगर पहले तुम्हें मेरे घर जाकर पूरा-पूरा समाचार लाना पड़ेगा। अगर मेरा मन न भरा, तो मैं लौट आऊँगा।

देवीदीन ने दृढता से कहा—मंजूर।

रमा ने संकोच से आँखें नीची करके कहा-एक बात और है।

देवीदीन—क्या बात है? कहो।

'मुझे कुछ कपड़े बनवाने पड़ेंगे।'

'बन जाएँगे।'