पृष्ठ:गबन.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

दारोगाजी को एकाएक जैसे कोई भूली हुई बात याद आ गई। मेज के दराज से एक मिसल निकाली, उसके पन्ने इधर-उधर उलटे, तब नम्रता से बोले—अगर मैं कोई ऐसी तरकीब बतलाऊँ कि देवीदीन के रुपए भी बच जाएँ और तुम्हारे ऊपर भी आँच न आए तो कैसा?

रमा ने अविश्वास के भाव से कहा, ऐसी तरकीब कोई है, मुझे तो आशा नहीं।

दारोगा-अजी साईं के सौ खेल हैं। इसका इंतजाम मैं कर सकता हूँ। आपको महज एक मुकदमे में शहादत देनी पड़ेगी?

रमानाथ-झूठी शहादत होगी।

दारोगा-नहीं, बिल्कुल सच्ची। बस समझ लो कि आदमी बन जाओगे। म्युनिसिपैलिटी के पंजे से तो छूट जाओगेशायद सरकार परवरिश भी करे। यों अगर चालान हो गया तो पाँच साल से कम की सजा न होगी। मान लो, इस वक्त देवी तुम्हें बचा भी ले, तो बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी। जिंदगी खराब हो जाएगी। तुम अपना नफानुकसान खुद समझ लो। मैं जबरदस्ती नहीं करता।

दारोगाजी ने डकैती का वृत्तांत कह सुनाया। रमा ऐसे कई मुकदमे समाचार-पत्रों में पढ़ चुका था। संशय के भाव से बोला तो मुझे मुखबिर बनना पड़ेगा और यह कहना पड़ेगा कि मैं भी इन डकैतियों में शरीक था। यह तो झूठी शहादत हुई।

दारोगा-मुआमला बिल्कुल सच्चा है। आप बेगुनाहों को न फँसाएँगे। वही लोग जेल जाएँगे, जिन्हें जाना चाहिए। फिर झूठ कहाँ रहा? डाकुओं के डर से यहाँ के लोग शहादत देने पर राजी नहीं होते। बस और कोई बात नहीं। यह मैं मानता हूँ कि आपको कुछ झूठ बोलना पड़ेगा, लेकिन आपकी जिंदगी बनी जा रही है, इसके लिहाज से तो इतना झूठ कोई चीज नहीं। खूब सोच लीजिए। शाम तक जवाब दीजिएगा।

रमा के मन में बात बैठ गई। अगर एक बार झूठ बोलकर वह अपने पिछले कर्मों का प्रायश्चित्त कर सके और भविष्य भी सुधार ले, तो पूछना ही क्या, जेल से तो बच जाएगा। इसमें बहुत आगा-पीछा की जरूरत ही न थी। हाँ, इसका निश्चय हो जाना चाहिए कि उस पर फिर म्युनिसिपैलिटी अभियोग न चलाएगी और उसे कोई जगह अच्छी मिल जाएगी। वह जानता था, पुलिस की गरज है और वह मेरी कोई वाजिब शर्त अस्वीकार न करेगी। इस तरह बोला, मानो उसकी आत्मा धर्म और अधर्म के संकट में पड़ी हुई है—मुझे यही डर है कि कहीं मेरी गवाही से बेगुनाह लोग न फँस जाएँ।

दारोगा—इसका मैं आपको इत्मीनान दिलाता हैं।

रमानाथ–लेकिन कल को म्युनिसिपैलिटी मेरी गरदन नापे तो मैं किसे पुकारूँगा?

दारोगा—मजाल है, म्युनिसिपैलिटी चूँ कर सके। फौजदारी के मुकदमे में मुद्दई तो सरकार ही होगी। जब सरकार आपको मुआफ कर देगी, तो मुकदमा कैसे चलाएगी। आपको तहरीरी मुआफीनामा दे दिया जाएगा, साहब।

रमानाथ-और नौकरी?

दारोगा वह सरकार आप इंतजाम करेगी। ऐसे आदमियों को सरकार खुद अपना दोस्त बनाए रखना चाहती है।