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फिर कुछ दूर तक दोनों चुपचाप चलते रहे। जालपा एक वृक्ष की छाँह में खड़ी हो गई और बोली-दादा, मेरा जी चाहता है, आज जज साहब से मिलकर सारा हाल कह दूँ। शुरू से जो कुछ हुआ, सब कह सुनाऊँ। मैं सबूत दे दूँगी, तब तो मानेंगे?

देवीदीन ने आँखें गाड़कर कहा, जज साहब से!

जालपा ने उसकी आँखों से आँखें मिलाकर कहा-हाँ!

देवीदीन ने दुविधा में पड़कर कहा-मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता, बहूजी! हाकिम का वास्ता, न जाने चित पड़े या पट।

जालपा बोली-क्या पुलिसवालों से यह नहीं कह सकता कि तुम्हारा गवाह बनाया हुआ है?

'कह तो सकता है।'

'तो आज मैं उससे मिलूँ। मिल तो लेता है?'

'चलो, दरियाफ्त करेंगे, लेकिन मामला जोखिम है।'

'क्या जोखिम है, बताओ।'

'भैया पर कहीं झूठी गवाही का इलजाम लगाकर सजा कर दे तो?'

'तो कुछ नहीं। जो जैसा करे, वैसा भोगे।'

देवीदीन ने जालपा की इस निर्ममता पर चकित होकर कहा—एक दूसरा खटका है। सबसे बड़ा डर उसी का है।

जालपा ने उद्यत भाव से पूछा-वह क्या?

देवीदीन—पुलिस वाले बड़े कायर होते हैं। किसी का अपमान कर डालना तो इनकी दिल्लगी है। जज साहब पुलिस कमिसनर को बुलाकर यह सब हाल कहेंगे जरूर। कमिश्नर सोचेंगे कि यह औरत सारा खेल बिगाड़ रही है। इसी को गिरफ्तार कर लो। जज अँगरेज होता तो निडर होकर पुलिस की तबीह करता। हमारे भाई तो ऐसे मुकदमों में चूँ करते डरते हैं कि कहीं हमारे ही ऊपर न बगावत का इलजाम लग जाए। यही बात है। जज साहब पुलिस कमिसनर से जरूर कह सुनावेंगे। फिर यह तो न होगा कि मुकदमा उठा लिया जाए। यही होगा कि कलई न खुलने पावे। कौन जाने तुम्हीं को गिरफ्तार कर लें। कभी-कभी जब गवाह बदलने लगता है या कलई खोलने पर उतारू हो जाता है, तो पुलिस वाले उसके घर वालों को दबाते हैं। इनकी माया अपरंपार है।

जालपा सहम उठी। अपनी गिरफ्तारी का उसे भय न था, लेकिन कहीं पुलिस वाले रमा पर अत्याचार न करें। इस भय ने उसे कातर कर दिया। उसे इस समय ऐसी थकान मालूम हुई मानो सैकड़ों कोस की मंजिल पारकर आई हो। उसका सारा सत्साहस बर्फ के समान पिघल गया।

कुछ दूर आगे चलने के बाद उसने देवीदीन से पूछा—अब तो उनसे मुलाकात न हो सकेगी?

देवीदीन ने पूछा- भैया से?