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जोहरा ने कहा-मैं जाती हूँ!

रमा ने लजाते हुए कहा-जाने को तो मैं तैयार हूँ, लेकिन वहाँ तक पहुँच भी सकूँगा, इसमें संदेह है। कितना तोड़ है!

जोहरा ने एक कदम पानी में रखकर कहा- नहीं, मैं अभी निकाल लाती हूँ।

वह कमर तक पानी में चली गई। रमा ने सशंक होकर कहा—क्यों नाहक जान देने जाती हो, वहाँ शायद एक गड्ढा है। मैं तो जा ही रहा था।

जोहरा ने हाथों से मना करते हुए कहा-नहीं-नहीं, तुम्हें मेरी कसम, तुम न आना। मैं अभी लिये आती हूँ। मुझे तैरना आता है।

जालपा ने कहा—लाश होगी और क्या!

रमानाथ–शायद अभी जान हो।

जालपा—अच्छा, तो जोहरा तैर भी लेती है। तभी हिम्मत हुई।

रमा ने जोहरा की ओर चिंतित आँखों से देखते हुए कहा हाँ, कुछ-कुछ जानती तो हैं। ईश्वर करे लौट आएँ। मुझे अपनी कायरता पर लज्जा आ रही है।

जालपा ने बेहयाई से कहा-इसमें लज्जा की कौन सी बात है। मरी लाश के लिए जान को जोखिम में डालने से फायदा, जीती होती तो मैं खुद तुमसे कहती, जाकर निकाल लाओ।

रमा ने आत्म-धिक्कार के भाव से कहा यहाँ से कौन जान सकता है, जान है या नहीं। सचमुच बाल-बच्चों वाला आदमी नामर्द हो जाता है। मैं खड़ा रहा और जोहरा चली गई।

सहसा एक जोर की लहर आई और लाश को फिर धारा में बहा ले गई। जोहरा लाश के पास पहुँच चुकी थी। उसे पकड़कर खींचना ही चाहती थी कि इस लहर ने उसे दूर कर दिया। जोहरा खुद उसके जोर में आ गई और प्रवाह की ओर कई हाथ बह गईं। वह फिर सँभली, पर एक दूसरी लहर ने उसे फिर ढकेल दिया। रमा व्यग्र होकर पानी में कूद पड़ा और जोर-जोर से पुकारने लगा–जोहरा-जोहरा! मैं आता हूँ।

मगर जोहरा में अब लहरों से लड़ने की शक्ति न थी। वह वेग से लाश के साथ ही धारे में बही जा रही थी। उसके हाथ-पाँव हिलने बंद हो गए थे। एकाएक एक ऐसा रेला आया कि दोनों ही उसमें समा गए। एक मिनट के बाद जोहरा के काले बाल नजर आए। केवल एक क्षण तक यही अंतिम झलक थी। फिर वह नजर न आई।

रमा कोई सौ गज तक जोरों के साथ हाथ-पाँव मारता हुआ गया, लेकिन इतनी ही दूर में लहरों के वेग के कारण उसका दम फूल गया। अब आगे जाए कहाँ? जोहरा का तो कहीं पता भी न था। वही आखिरी झलक आँखों के सामने थी। किनारे पर जालपा खड़ी हाय-हाय कर रही थी। यहाँ तक कि वह भी पानी में कूद पड़ी। रमा अब आगे न बढ़ सका। एक शक्ति आगे खींचती थी, एक पीछे। आगे की शक्ति में अनुराग था, निराशा थी, बलिदान था।