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उस दिन से जालपा के पति-स्नेह में सेवा-भाव का उदय हुआ। वह स्नान करने जाता तो उसे अपनी धोती चुनी हुई मिलती। आले पर तेल और साबुन भी रखा हुआ पाता। जब दफ्तर जाने लगता तो जालपा उसके कपड़े लाकर सामने रख देती। पहले पान माँगने पर मिलते थे, अब जबरदस्ती खिलाए जाते थे। जालपा उसका रुख देखा करती। उसे कुछ कहने की जरूरत न थी, यहाँ तक कि जब वह भोजन करने बैठता तो वह पंखा झला करती। पहले वह बड़ी अनिच्छा से भोजन बनाने जाती थी और उस पर भी बेगार सी टालती थी। अब बड़े प्रेम से रसोई में जाती। चीजें अब भी वही बनती थीं, पर उनका स्वाद बढ़ गया था। रमा को इस मधुर स्नेह के सामने वह दो गहने बहुत ही तुच्छ अँचते थे।

उधर जिस दिन रमा ने गंगू की दुकान से गहने खरीदे, उसी दिन दूसरे सर्राफों को भी उसके आभूषण-प्रेम की सूचना मिल गई। रमा जब उधर से निकलता तो दोनों तरफ से दुकानदार उठ-उठकर उसे सलाम करते—आइए बाबूजी, पान तो खाते जाइए। दो-एक चीजें हमारी दुकान से तो देखिए।

रमा का आत्म-संयम उसकी साख को और भी बढ़ाता था। यहाँ तक कि एक दिन एक दलाल रमा के घर पर आ पहुँचा और उसके 'नहीं-नहीं करने पर भी अपनी संदूकची खोल ही दी।

रमा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहा-भाई, इस वक्त मुझे कुछ नहीं लेना है। क्यों अपना और मेरा समय नष्ट करोगे। दलाल ने बड़े विनीत भाव से कहा-बाबूजी, देख तो लीजिए। पसंद आए तो लीजिएगा, नहीं तो न लीजिएगा। देख लेने में तो कोई हर्ज नहीं है। आखिर रईसों के पास न जाएँ, तो किसके पास जाएँ। औरों ने आपसे गहरी रकमें मारी, हमारे भाग्य में भी बदा होगा, तो आपसे चार पैसा पा जाएँगे। बहूजी और माईजी को दिखा लीजिए! मेरा मन तो कहता है कि आज आप ही के हाथों बोहनी होगी।

रमानाथ औरतों के पसंद की न कहो, चीजें अच्छी होंगी ही। पसंद आते क्या देर लगती है, लेकिन भाई, इस वक्त हाथ खाली है।

दलाल हँसकर बोला-बाबूजी, बस ऐसी बात कह देते हैं कि वाह! आपका हुक्म हो जाए तो हजार-पाँच सौ आपके ऊपर निछावर कर दें। हम लोग आदमी का मिजाज देखते हैं, बाबूजी! भगवान् ने चाहा तो आज मैं सौदा करके ही उठूंगा।

दलाल ने संदूकची से दो चीजें निकालीं, एक तो नए फैशन का जड़ाऊ कंगन था और दूसरा कानों का रिंग, दोनों ही चीजें अपूर्व थीं। ऐसी चमक थी मानो दीपक जल रहा हो। दस बजे थे, दयानाथ दफ्तर जा चुके थे, वह भी भोजन करने जा रहा था। समय बिल्कुल न था, लेकिन इन दोनों चीजों को देखकर उसे किसी बात की सुध ही न रही। दोनों केस लिए हुए घर में आया। उसके हाथ में केस देखते ही दोनों स्त्रियाँ टूट पड़ीं और उन चीजों को निकाल-निकालकर देखने लगीं। उनकी चमक-दमक ने उन्हें ऐसा मोहित कर लिया कि गुण-दोष की विवेचना करने की उनमें शक्ति ही न रही।

रामेश्वरी—आजकल की चीजों के सामने तो पुरानी चीजें कुछ अँचती ही नहीं।