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रमा ने विस्मय से पूछा–मुफ्त क्यों? रुपए न देने पड़ेंगे?

जालपा–रुपए तो अम्माँजी देंगी? रमानाथ—क्या कुछ कहती थीं?

जालपा—उन्होंने मुझे भेंट दिए हैं, तो रुपए कौन देगा? रमा ने उसके भोलेपन पर मुसकराकर कहा, यही समझकर तुमने यह चीजें ले ली? अम्माँ को देना होता तो उसी वक्त दे देतीं, जब गहने चोरी गए थे। क्या उनके पास रुपए न थे?

जालपा असमंजस में पड़कर बोली-तो मुझे क्या मालूम था। अब भी तो लौटा सकते हो, कह देना, जिसके लिए लिया था, उसे पसंद नहीं आया। यह कहकर उसने तुरंत कानों से रिंग निकाल लिए। कंगन भी उतार डाले और दोनों चीजें केस में रखकर उसकी तरफ इस तरह बढ़ाई, जैसे कोई बिल्ली चूहे से खेल रही हो, वह चूहे को अपनी पकड़ से बाहर नहीं होने देती। उसे छोड़कर भी नहीं छोड़ती। हाथों को फैलाने का साहस नहीं होता था। क्या उसके हृदय की भी यही दशा न थी? उसके मुख पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। क्यों वह रमा की ओर न देखकर भूमि की ओर देख रही थी क्यों सिर ऊपर न उठाती थी? किसी संकट से बच जाने में जो हार्दिक आनंद होता है, वह कहाँ था? उसकी दशा ठीक उस माता की सी थी, जो अपने बालक को विदेश जाने की अनुमति दे रही हो। वही विवशता, वही कातरता, वही ममता इस समय जालपा के मुख पर उदय हो रही थी। रमा उसके हाथ से केसों को ले सके, इतना कड़ा संयम उसमें न था। उसे तकाजे सहना, लज्जित होना, मुँह छिपाए फिरना, चिंता की आग में जलना, सबकुछ सहना मंजूर था। ऐसा काम करना नामंजूर था जिससे जालपा का दिल टूट जाए, वह अपने को अभागिन समझने लगे। उसका सारा ज्ञान, सारी चेष्टा, सारा विवेक इस आघात का विरोध करने लगा। प्रेम और परिस्थितियों के संघर्ष में प्रेम ने विजय पाई। उसने मुसकराकर कहा—रहने दो, अब ले लिया है तो क्या लौटाएँ। अम्माँजी भी हँसेंगी।

जालपा ने बनावटी काँपते हुए कंठ से कहा-अपनी चादर देखकर ही पाँव फैलाना चाहिए। एक नई विपत्ति मोल लेने की क्या जरूरत है! रमा ने मानो जल में डूबते हुए कहा-ईश्वर मालिक है और तुरंत नीचे चला गया। हम क्षणिक मोह और संकोच में पड़कर अपने जीवन के सुख और शांति का कैसे होम कर देते हैंअगर जालपा मोह के इस झोंके में अपने को स्थिर रख सकती, अगर रमा संकोच के आगे सिर न झुका देता, दोनों के हृदय में प्रेम का सच्चा प्रकाश होता, तो वे पथ-भ्रष्ट होकर सर्वनाश की ओर न जाते। ग्यारह बज गए थे। दफ्तर के लिए देर हो रही थी, पर रमा इस तरह जा रहा था, जैसे कोई अपने प्रिय बंधु की दाह-क्रिया करके लौट रहा हो।