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घर पर बैठे रहा नहीं जाता। केवल दो चपातियों से नाता है। बहुत जिद की तो दो-चार दाने अंगूर खा लिए। मुझे तो उन पर दया आती है, अपने से जहाँ तक हो सकता है, उनकी सेवा करती हूँ। आखिर वह मेरे ही लिए तो अपनी जान खपा रहे हैं।

जालपा—ऐसे पुरुष को देवता समझना चाहिए। यहाँ तो एक स्त्री मरी नहीं कि दूसरा ब्याह रच गया। तीस साल अकेले रहना सबका काम नहीं है।

रतन–हाँ बहन, हैं तो देवता ही। अब भी कभी उस स्त्री की चर्चा आ जाती है तो रोने लगते हैं। तुम्हें उनकी तसवीर दिखाऊँगी। देखने में जितने कठोर मालूम होते हैं, भीतर से इनका हृदय उतना ही नरम है। कितने ही अनाथों, विधवाओं और गरीबों के महीने बाँध रखे हैं। तुम्हारा वह कंगन तो बड़ा सुंदर है! जालपा–हाँ, बड़े अच्छे कारीगर का बनाया हुआ है। रतन–मैं तो यहाँ किसी को जानती ही नहीं। वकील साहब को गहनों के लिए कष्ट देने की इच्छा नहीं होती। मामूली सुनारों से बनवाते डर लगता है, न जाने क्या मिला दे? मेरी सपत्नीजी के सब गहने रखे हुए हैं, लेकिन वह मुझे अच्छे नहीं लगते। तुम बाबू रमानाथ से मेरे लिए ऐसा ही एक जोड़ा कंगन बनवा दो।

जालपा देखिए, पूछती हूँ। रतन आज तुम्हारे आने से जी बहुत खुश हुआ। दिन भर अकेली पड़ी रहती हूँ। जी घबड़ाया करता है। किसके पास जाऊँ? किसी से परिचय नहीं और न मेरा मन ही चाहता है कि उनसे मैत्री करूँ। दो-एक महिलाओं को बुलाया, उनके घर गई, चाहा कि उनसे बहनापा जोड़ लूँ, लेकिन उनके आचार-विचार देखकर उनसे दूर रहना ही अच्छा मालूम हुआ। दोनों ही मुझे उल्लू बनाकर लूटना चाहती थीं। मुझसे रुपए उधार ले गई और आज तक दे रही हैं। शृंगार की चीजों पर मैंने उनका इतना प्रेम देखा कि कहते लज्जा आती है। तुम घड़ी-आध घड़ी के लिए रोज चली आया करो बहन।

जालपा–वाह इससे अच्छा और क्या होगा।

रतन—मैं मोटर भेज दिया करूँगी।

जालपा-क्या जरूरत है। ताँगे तो मिलते ही हैं।

रतन न जाने क्यों तुम्हें छोड़ने को जी नहीं चाहता। तुम्हें पाकर रमानाथजी अपना भाग्य सराहते होंगे। जालपा ने मुसकराकर कहा-भाग्य-वाग्य तो कहीं नहीं सराहते, घुड़कियाँ जमाया करते हैं। रतन–सच! मुझे तो विश्वास नहीं आता। लो, वह भी तो आ गए। पूछना, ऐसा दूसरा कंगन बनवा देंगे। जालपा-(रमा से) क्यों चरनदास से कहा जाए तो ऐसा कंगन कितने दिन में बना देगा! रतन ऐसा ही कंगन बनवाना चाहती है।

रमा ने तत्परता से कहा हाँ, बना क्यों नहीं सकता। इससे बहुत अच्छे बना सकता है।

रतन-इस जोड़े के क्या लिये थे?