पृष्ठ:गबन.pdf/७६

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रुपए भुनाते हुए उसे एक रुपया कम हो जाने का खयाल हुआ। वह शाम तक बैठा काम करता रहा। चार रुपए और वसूल हुए। चिराग जले; वह घर चला, तो उसके मन पर से चिंता और निराशा का बहुत कुछ बोझ उतर चुका था। अगर दस दिन यही तेजी रही, तो रतन से मुँह चुराने की नौबत न आएगी।