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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

राधा-वर ब्रजराज, दया कर दुःख हरेंगे।
हित की ठोकर मार, अमङ्गल दूर करेंगे॥

(९१)


श्री, गणेश, कमलेश, प्रजेश, महेश, भवानी।
शेष, सुरेश, दिनेश, निशेश, महा सुखदानी॥
पितर, देवता, सिद्ध, नाग, तीरथ, ग्रह, सारे।
करदें इसे सचेत, पाप-कुल काटन हारे॥

(९२)


देव दयालु पुकार, सुनेंगे मत घबरावे।
सब को मन्नत मान, मान कर क्यों न मनावे॥
वीरभद्र, हनुमान, भूत-गण, भैरव, काली।
इन को भोग, प्रसाद, चढ़ाना भर भर थाली॥

(९३)


भुमियाँ, चामड़ पूज, मसानी का मुख भरना।
मियाँ, मदार मनाय, जात ज़ाहर की करना॥
जखई के गुण गाय, भुनी मकई बटवाना।
मद की धार चढ़ाय, श्वेत शूकर कटवाना॥

(९४)


जितने देव अदेव, चुड़ेल, अऊत जनाये।
वे सब सीस नवाय, सभक्ति, समान मनाये॥