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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(११३)


नदियाँ वेग बढ़ाय, पाय पानी जल-धर से।
मिलती हैं तज मान, प्राणवल्लभ सागर से॥
यों सधवा सुख भोग, प्यार पति पै करती हैं।
दुखिया अक्षतयोनि, बालविधवा मरती हैं॥

(११४)


कोमल पल्लव पाय, हरे तरु फूल रहे हैं।
सरस अनेकाकार, फली फल भूल रहे हैं॥
लिपट लपेटा मार, बल्लियाँ लटक रही हैं।
हा! विधवा बिन जोड़, अकेली भटक रही हैं॥

(११५)


कोइल, चातक, मोर, आदि सब चिड़ियाँ बोलें।
बच्चों पर कर प्यार, चहकती चुगती डोलें॥
एक नहीं बिन जोड़, निकट मादा के नर है।
मुझ अधमा के साथ, न प्यारा पुत्र न वर है॥

(११६)


दिन बिन दोनों ओर, विषम दुर्गति होती है।
कूके चक उस पार, इधर चकई रोती है॥
अपने पति से रात, बिताय मिलाप करेगी।
विवश न मेरी भाँति, सदैव विलाप करेगी॥