पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/६०

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गर्भ-रण्डा-रहस्य। गगन-घोषणा रूप , सुनी सबने यह बोली। ललनागण से आज, अटक उलझेगी होली ॥ (१६६) कर सुन्दर शृङ्गार, चलीं चुपचाप लुगाई वटुओं में भर भेंट, मुदित मन्दिर में आई ॥ अटकी काल कुचाल, कुसङ्गति ने मति फेरी। मुझको लेकर साथ, सधन पहुँची मा मेरी ॥ ( १७०) साधन सर्व-सुधार, सजीले सदुपदेश के। दर्शन को झट खोल, दिये पट गोकुलेश के ॥ श्रीगुरुदेव दयालु, महा छवि धार पधारे। सब ने धन से पूज, देह, जीवन, मन वारे ॥ अबला * एक अधेड़, अचानक आकर बोली। हिलमिल खेलो फाग, उठो अब सुनलोहोली। .. अबला एक अधेड = यह अबला (सवला ) श्राप्रभ की दूनीजी हैं ,इन्ही की कृपा से महि लामण्डल का उद्धार हुआ करता है । +(श्रीमती दूतीजी को होला) यथाविधि होली, उठो अब खुल खुल खेलो होली ॥ टेक ॥ प्रेम तुला पर आज तुम्हारी, ठसक जायगी तोली । क्रिम में कितनी भक्ति भरी है, कौन प्रकट हो पोली ।। (२७१) पग पजा