पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/७

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सकें तो काटें अन्यथा उनके कालकवलित होने में ही भलाई समझी जाती है। जिसकी मंजु-मनोहर मोहिनी मूर्ति को देख कर बड़े बड़े विचारशील बुद्धिमानों के चित्त चलायमान हो जाते है-जिसकी विकरालमुखी बाण वर्षा के विलक्षण वेग को बड़े बड़े धर्मधुरन्धर, धर्मवीर भी नहीं रोक सकते, उस असीम शक्तिशाली 'अनङ्गराज' को अल्पवयस्क अबोध अबलाएँ जीत कर विजय-दुन्दुभि बजा सकेंगी-यह कितनी असम्भव और कैसी बेजोड़ बात है!

जिसकी पृष्ठपोषकता में, इतिहास, पुराण, स्मृति आदि धर्म-ग्रन्थों के पन्ने के पन्ने भरे पड़े हों-जिसकी उपयोगिता, युक्ति-प्रमाणों द्वारा भलीभाँति सिद्ध हो चुकी हो-जिसकी महत्ता ने प्रत्येक विचारशील सज्जन के हृदय पर अधिकार कर रक्खा हो, उस विधवा विवाह के प्रचार में बाधा डालना अथवा उसके मार्ग को कंटकाकीर्ण करना पल्ले सिरे की अदूरदर्शिता और अव्वल दरजे की अविवेकता है। दयानन्द, ईश्वरचन्द्र, हरिश्चन्द्र, शङ्करलाल आदि विमुक्त पुरुषों की विशुद्ध आत्माएँ हमारे इस अत्याचार को देख कर क्या कहती होंगी? महाकवि हाली की 'फरियादे-बेवगान' का तनिक तो असर होना चाहिये था, सुप्रसिद्ध सनातनधर्मी विद्वान् श्रीराधाचरण गोस्वामी के लेखों का कुछ तो परिणाम निकलना चाहिये था। इन महानुभावों को यह ज्ञात न था कि हमारे लेखो की अवहेलना कर आर्य-जाति, विधवा-विवाह-प्रचार में, ऐसी मन्दगति, उदासीनता प्रत्युत कर्महीनता का परिचय देगी। विधवाओं का दुःख दूर करने के बदले उन्हें उस