पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/७६

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गर्म-रण्डा-रहस्य । (२२७) काकपक्ष धर धींग, पाकशासन का लड़का। अनुजवधूटी। जान, सकाना नेक न फड़का । छोड़ राग-रस-रङ्ग, भरे देवेन्द्र-सदन को। चलदी दक्षिण ओर, देखने रविनन्दन को ॥ (२२८) रक्त, वसा, मल, पीब, भरी निरखी वैतरणी। मनुज मरों को धेनु, तारती थीं जिमि तरणी॥ यम का वाहन और, दूत सरितातट पाया। होकर महिषारूढ़, चली मैं बनकर छाया ॥ २२६) पहुँचा अन्तक-धाम, सवल भैंसा द्रुतगामी । मैं घुस गई समोद, निरख न्यायालय नामी॥ मन्दिर में यमराज, सशक्ति विराज रहे थे। भीमकाय, विकराल, दूतगण गाज रहे थे। (२३०) चित्रगुप्त कर जाँच, पाप सबके कहते थे। - अपराधी अभियुक्त, शोक, संकट सहते थे। देख मुझे तज काम, भानुसुत दण्ड विधाता। झपटे किया प्रणाम, जानकर अपनी माता॥

  • इन्द्र । + द्रौपदी (छोटे भाई की त्री)। यमराज ।

ई यम की माता।