वंशी रखकर साक़ी क्षण-भर बेगम के पास आकर खड़ी हुई। उसका शरीर काँपा, आँखें जलने लगी, कण्ठ सूख गया। वह घुटने के बल बैठकर बहुत धीरे-धीरे अपने आँचल से बेगम के मुख का पसीना पोंछने लगी। इसके बाद उसने झुककर बेगम का मुँह चूम लिया।
इसके बाद ज्योंही उसने अचानक आँख उठाकर देखा, खुद दीन-दुनिया के मालिक शाहज़हाँ खड़े उसकी यह करतूर अचरज और क्रोध से देख रहे हैं।
साक़ी को साँप डस गया। वह हत-बुद्धि की तरह बादशाह का मुँह ताकने लगी। बादशाह ने कहा––"तू कौन है? और यह क्या कर रही थी?"
साक़ी चुप खड़ी रही। बादशाह ने कहा––"जवाब दे!"
साक़ी ने धीमे स्वर में कहा-"जहाँपनाह! कनीज़ अगर कुछ जवाब न दे, तो?"
बादशाह सन्नाटे में आ गये। बाँदी की इतनी स्पर्धा!
उन्होंने कहा––"मेरी बात का जवाब नहीं? अच्छा तुझे नंगी करके कोड़े लगाए जाँयगे!"
साक़ी ने कम्पित स्वर में कहा––"मैं मर्द हूँ!"
बादशाह की आँखों में सरसों फूल उठी, उन्होंने अग्नि-मय नेत्रों से सलीमा की ओर देखा। वह बेसुध पड़ी सो रही थी। उसी तरह उसका भरा यौवन खुला पड़ा था। उनके मुँह से निकला––
"उफ फाहशा!" और तत्काल उनका हाथ तलवार की मूठ पर