नहीं लगती। बेचारे नवाबसाहब इस वक्त़ खून के आँसू रो रहे होंगे।
मीर––रोया ही चाहें। यह ऐश वहाँ कहाँ नसीब होगा–– यह किश्त!
मिरजा––किसी के दिन बराबर नहीं जाते। कितनी दर्दनाक हालत है।
मीर––हाँ सो तो है ही—–यह लो फिर किश्त! बस, अबकी किश्त में मात है, बच नहीं सकते।
मिरजा––खुदा की कसम, आप बड़े बेदर्द हैं। इतना बड़ा हादसा देखकर भी आपको दु:ख नहीं होता। हाय, ग़रीब वाजिदअली शाह!
मीर––पहले अपने बादशाह को तो बचाइए, फिर नवाब-साहब का मातम कीजिएगा। यह किश्त और मात! लाना हाथ!
बादशाह को लिये हुए सेना सामने से निकल गई! उनके जाते ही मिरजा ने फिर बाजी बिछा दी । हार की चोट बुरी होती है। मीर ने कहा-आइये, नवाबसाहब के मातम में एक मरसिया कह डालें; लेकिन मिरजा की राज-भक्ति अपनी हार के साथ लुप्त हो चुकी थी। वह हार का बदला चुकाने के लिये अधीर हो रहे थे।
( ४ )
शाम हो गई। खँडहर में चमगादड़ों ने चीखना शुरू किया।