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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/१६३

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रानी सारन्धा

रानी-वह आपकी चीज नहीं, मेरी है। मैंने उसे रण-भूमि में पाया है और उस पर मेरा अधिकार है। क्या रणनीति की इतनी मोटी बात भी आप नहीं जानते?

खाँसाहब-वह घोड़ा मैं नहीं दे सकता, उसके बदले में सारा अस्तबल आपको नज़र है।

रानी-मैं अपना घोड़ा लूँगी।

खाँसाहब—मैं उसके बराबर जवाहरात दे सकता हूँ; परन्तु घोड़ा नहीं दे सकता।

रानी—तो फिर इसका निश्चय तलवारों से होगा।

बुन्देला—योद्धाओं ने तलवारें सौंत लीं और निकट था कि दरबार की भूमि रक्त से प्लावित हो जाय कि बादशाह आलमगीर ने बीच में आकर कहा-'रानी साहबा! आप सिपाहियों को रोकें। घोड़ा आपको मिल जायगा; परन्तु उसका मूल्य बहुत देना पड़ेगा।

रानी—मैं उसके लिये अपना सर्वस्व त्याग ने पर तैयार हूँ।

बादशाह—जागीर और मन्सब भी?

रानी—जागीर और मन्सब कोई चीज़ नहीं।

बादशाह—अपना राज्य भी?

रानी—हाँ राज्य भी।

बादशाह—एक घोड़े के लिये?

रानी—नहीं उस पदार्थ के लिये, जो संसार में सबसे अधिक मूल्यवान् है।

बादशाह—वह क्या है?