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आत्माराम


तलुओं से आग निकल रही थी, सिर चक्कर खा रहा था। जब जरा सावधान हुआ, तो फिर पिंजरा उठाकर कहने लगा, 'सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।' तोता फुनगी से उतरकर नीचे की एक डाल पर आ बैठा; किन्तु महादेव की ओर सशंक नेत्रोंसे ताक रहा था। महादेव ने समझा—डर रहा है। वह पिंजरे की छोड़कर आप एक दूसरे पेड़ की आड़ में छिप गया। तोते ने चारों ओर गौर से देखा, निश्शंक हो गया, उतरा ओर आकर पिंजरा के ऊपर बैठ गया। महादेव का हृदय उछलने लगा। 'सत्त गुरुदत्त शिवदत्त' का मंत्र जपता हुआ धीरे-धीरे तोते के समीप आया, और लपका कि तोते को पकड़ लें; किन्तु तोता हाथ न आया, फिर पेड़ पर जा बैठा।

साँझ पक यही हाल रहा। तोता कभी इस डाल पर जाता,कभी उस डाल पर। कभी पिंजरे पर आ बैठता, कभी पिंजरे के द्वार पर बैठ अपने दाना-पानी की प्यालियों को देखता, फिर उड़ जाता। बुड्ढा अगर मूर्तिमान मोह था; तो तोता मूर्तिंमती माया। यहाँ तक कि शाम हो गई, माया और मोह का यह संग्राम अंधकार में विलीन ही गया।

(३)

रात हो गई। चारों ओर निबिड़ अन्धकार छा गया। तोता न-जाने पत्तों में कहाँ छिपा बैठा था। महादेव जानता था कि रात को तोता कहीं उड़कर नहीं जा सकता और न पिंजरे ही में आ सकता है, तिस पर भी वह इस जगह से हिलने का नाम न