रमणी—कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। गुर्जर स्वाधीन देश है। यहाँ हिंदू बसते हैं। पर-स्त्री और पर-कन्या को सब भगिनी-भाव से देखते हैं। साहब, इस देश में रमणी को विपद् की आशंका नहीं रहती।
शाह जमाल—समझ गया; पर हम तुम्हारा पूरा परिचय चाहते हैं।
रमणी—इससे अधिक मैं नहीं कह सकती।
शाह जमाल ने मन-ही-मन उस रमणी के साहस की बहुत प्रशंसा की; फिर कठोर स्वर से बोले—रमणी, परिचय न देने से बिपद् में पड़ोगी।
रमणी—विपद् में कौन डालेगा?
शाह—हम और हमारे साथी।
रमणी—आपके और कितने साथी हैं?
शाह—चार।
रमणी—क्या वे भी आपके समान वीर हैं, क्या स्वाधीनता की लीला-भूमि अगानिस्थान के सब वीर, रमणी पर अत्याचार करते हैं?
रुस्तम यह सह न सका। उसने तलवार खींच ली। रमणी ने शीघ्रता से रुस्तम का हाथ पकड़कर ऐसा झटका दिया कि, तलवार हाथ से छिटककर दूर जा गिरी।
रुस्तम विस्मय-सहित बोल उठा—मां, तुम कौन हो?
रमणी ने हँसकर कहा—मैं भगवान् सोमनाथ की दासी हूँ।