पवित्र भूमि किसी विदेशी के रक्त से रञ्जित न हो, यही हमारी इच्छा थी और इसीलिये हमने तुम्हारे हाथ से तलवार ले ली।
शाहज़ादे ने चकित होकर पूछा—यह तुमसे किसने कहा कि हम लोग विदेशी हैं?
रमणी—तुम्हारे इस कार्य ने। गुर्जर-देश के सम्पूर्ण अधिवासी, हज़ार कारण होने पर भी, अपने देश-बन्धु के शोणित से इस भूमि को कलंकित न करेंगे और तुम यही करने चले थे।
शाह—(उठकर) रमणी! तुम कौन हो?
रमणी—मैं भगवान् सोमनाथ की दासी हूँ।
शाह—क्या तुमने हम लोगों की सब बातें सुन ली?
रमणी—हाँ।
शाह—बताओ तो हम कौन हैं?
रमणी—आप गुर्जर के घोर शत्रु हैं।
शाह—(हँसकर) रमणी, तुमने भूल की है, हम लोग काश्मीर के वणिक् हैं।
रमणी—नहीं साहब, मैं भूलती नहीं हूँ। आप सुलतान महमूद के भ्रातृ-पुत्र शाहज़ादे हैं और ये रुस्तम।
शाह जमाल चमक उठा। मुख मलीन हो गया। वह बोला—रमणी, तुम्हारे साथ और कोई है?
रमणी—नहीं साहब, मैं अकेली हूँ।
शाह जमाल—तुम एक रूपवती रमणी हो। फिर भी अकेली ही फिरती हो!