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गल्प-समुच्चय


होते ही क्षण भर में वहाँ १०० शस्त्रधारी सैनिक आ पहुँचे। उनमें से एक ने आगे बढ़कर कहा—माँ, क्या आज्ञा है।

रमणी ने हँसकर कहा—कुछ नहीं। यों ही एक बार तुम्हें देखने की इच्छा हुई। अब तुम लोग जाओ।

क्षण-भर में वे लोग जहाँ से आये थे वहीं चले गये।

शाह जमाल ने यह देखकर कहा—"अच्छा, हम चलते हैं;पर एक बात की प्रतिज्ञा करो।

रमणी—किस बात की?

शाह—दगा तो नहीं करोगी?

रमणी—ना, भगवान् सोमनाथ हमें ऐसी मति न दें।

शाह—और एक बात । हमारा परिचय किसी को न देना।

रमणी—स्वीकार है।

शाह—और कल सूर्योदय के पहले हमें बिदा दे देना और एक नाव भी ठीक करना।

रमणी—यह भी स्वीकार है।

शाह जमाल ने रुस्तम की ओर देखकर कहा—रुस्तम, उन लोगों को भी बुला लो।

रुस्तम ने एक सीटी बजाई, जिसे सुनते ही वे चारों सैनिक भी आ गये।

रमणी आगे-आगे चलने लगी और वे लोग विस्मय-विमुग्ध होकर पीछे-पीछे जाने लगे।