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कमलावती

(३)

कुछ दूर चलने के बाद एक वृहत् अट्टालिका मिली। वहाँ १० शस्त्रधारी सैनिक इधर-उधर घूम रहे थे। रमणी ने शाहज़ादे की ओर देख कर कहा—महाशय! आप यहाँ निश्शंक आइये। राजपूत अपने अतिथि का अनिष्ट कभी नहीं करते। घोर शत्रु भी यदि अतिथि होकर आवे, तो वह हम लोगों का पूजनीय है।

इसके बाद उसने एक सैनिक की ओर देखकर कहा—भैरव,ये लोग हमारे अतिथि हैं। इनको विश्राम-स्थान बतलाओ।—भैरव ने आकर कहा—चलिये महाशय ।

रमणी एक ओर चली गई और शाह जमाल तथा उसके साथियों ने उस बृहत् अट्टालिका में प्रवेश किया। भैरव इनको एक सजे हुए कमरे में ले गया। वहाँ इनसे कहा—यह कमरा आपके लिये है और यह दूसरा कमरा आपके भृत्यों के लिए।

यह कहकर भैरव चला गया। शाह जमाल की आज्ञा पाकर वे चारों सैनिक भी दूसरे कमरे में चले गये। उस कमरे में केवल शाह जमाल और रुस्तम रह गये।

शाह जमाल ने कहा—रुस्तम !

रुस्तम—जनाब।

शाह—यह क्या व्यापार है ? कुछ समझ में आता है ?

रुस्तम—जनाब! कुछ नहीं।

शाह—इनका उद्देश्य क्या है? अतिथि बनाना या इसी मिस से बन्दी करना?