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गल्प-समुच्चय


सन्ध्या के समय एक निर्जन कमरे में बैठे शाह जमाल और रुस्तम वार्तालाप कर रहे हैं। शाह जमाल ने कहा—रुस्तम साहब, आपने हमारी बे-अदबी तो माफ़ कर दी?

रुस्तम—जनाब का लड़कपन अभी नहीं गया है। इसी से उस दिन ऐसी बात हो गई; पर हमने मन में उसे कभी नहीं रक्खा। हुजूर, यह ध्यान रक्खें, कि ऐसी छोटी-छोटी बातों पर रुस्तम कभी ध्यान नहीं देता।

शाह—हमसे एक बात की प्रतिज्ञा करो।

रुस्तम—कहिए।

शाह—उस दिन की बात तो तुम सुलतान से कभी न कहोगे?

रुस्तम—आज तक मैंने मिथ्या-भाषण नहीं किया है। आपके लिये मैं वह भी करूंँगा। आप विश्वास करें, सुलतान को यह बात कभी न मालूम होगी।

शाह—रुस्तम हमने भी दृढ़ नियम किया है, कि हम सुलतान की आज्ञा कभी न भङ्ग करेंगे।

रुस्तम—तो क्या आप गुर्जर पर, उनके कहने से, आक्रमण करेंगे?

शाह—ज़रूर।

रुस्तम—यह क्या? शाहज़ादे, यह सब कमलावती के लिये तो नहीं है?

शाह—वही बात है रुस्तम!

रुस्तम—पर आप यह जान लें, कि गुर्जर को ध्वंस किये बिना