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आप पीलीभीत के निवासी थे। आपके देहावसान को तीन वर्ष हो गये। आप सानुप्रास भाषा लिखते थे। आपकी लेखन-शैली मधुर और चरित्र-चित्रण आकर्षक होता था। यदि आप कुछ काल तक और जीवित रहते, तो हिन्दी-साहित्य में एक विशिष्ट धारा प्रवाहित कर जाते। आपके 'मंगल-प्रभात' और 'मनोरमा' आदि उपन्यास तथा 'नन्दन-निकुञ्ज' आदि गल्प-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कुछ दिनों तक आप 'चाँद' के सहकारी संपादक भी रह चुके हैं। कविताएँ भी आप अच्छी लिख लेते थे।