पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२४२
गल्प-समुच्चय

से रखते थे। जबसे सुशीला को गर्भ-स्थिति हुई, तब से तो उन्होंने उसकी सुश्रूषा और सेवा की और भी सुचारु व्यवस्था कर दी थी। पहले घर में केवल एक वृद्धा दासी थी, अब उन्होंने सुशीला की समवयस्का एक और परिचारिका का भी प्रबन्ध कर दिया। वे उसकी इच्छा की सदा पूर्ति किया करते थे! खाने-पीने में छोड़कर बाक़ी उसकी और किसी अभिलाषा का वह प्रतिवाद नहीं करते थे। सुशीला के मुख से निकलते-निकलते ही वे उसकी इच्छा को पूरी कर देते। प्रातःकाल ओर सायंकाल वे उसे अपने साथ लेकर गृह-संलग्न उद्यान में शीतल मधुर वायु का सेवन करते। रात्री में भोजन के उपरान्त वे उसे धार्मिक वीर पुरुषों की पवित्र गाथाएँ सुनाते और उनकी सदा यहो चेष्टा रहती कि सुशीला का मनोरञ्जन होता रहे। सुशीला के मन में दुःग्व अथवा ग्लानि की एक क्षीण रेखा भी अङ्कित न होने पावे—इस विषय में सत्येन्द्र सदा प्रयत्नशील रहते।

रात्रि का प्रथम प्रहर व्यतीत हो चुका है। सत्येन्द्र अपने कमरे में एक आराम कुर्सी पर लेटे-लेटे किसी ग्रन्थ का पारायण कर रहे हैं—पास ही एक दूध के फेन के समान कोमल शय्या पर सुशीला लेटी हुई है। सुशीला एक टक अपने प्राणाधार के प्रोज्ज्वल मुख की ओर देख रही है। थोड़ी देर तक इस प्रकार रूप-सुधा पी चुकने के उपरान्त सुन्दरी सुशीला ने मृदुल मन्द स्वर में कहा—नाथ! मेरी एक इच्छा है।

सत्येन्द्र—कहो प्रिये! निस्संकोच भाव से कह डालो। मैं