पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४
गल्प-समुच्चय


एक रजिस्टर्ड इक़रारनामा मिलेगा। उसमें उन्होंने मेरे पति की सम्पत्ति को मेरी सम्पत्ति से अलग, अर्थात विभक्त बताया है। उसमें मेरे पतिदेव का पूरा पता भी प्रसङ्गवश आ गया है। उसको आप साधारण काराज़ न समझिये। उसके द्वारा मेरी एकमात्र कन्या सरला-ईश्वर उसे सानन्द रक्खे-एक दिन लाख रुपये से अधिक मूल्यवाली सम्पत्ति की अधिकारिणी बन सकती है। पर मैं नहीं चाहती कि उसका प्रयोग किया जाय। मुझे पूर्ण आशा है कि मेरी सरला अपने गुणों के कारण ही बहुत बड़ा सम्पत्ति की अधिकारिणी होगी।

अन्त में, मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देती हूँ कि ईश्वर आपका भला करें; क्योंकि आपने मेरा और मेरी कन्या का भला किया है।"

डाक्टर राजनाथ को पत्र पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वे बहुत देर तक ईश्वरीय माया और मरने वाली सती की दृढ़ प्रतिज्ञा पर विचार करते रहे। उन्होंने दूसरा लिफ़ाफा बिना पढ़े ही अपने बाक्स में बन्द कर दिया।

( ५ )

जब डाक्टर राजनाथ ने सतीश के पत्र में यह पढ़ा कि वह परीक्षा देकर मकान पर न आवेगा, तब उनको बड़ी चिन्ता हुई। उसका विचार कुछ दिनों इधर-उधर घूमने का है। और खर्च के लिये पाँच सौ रुपये उससे माँगे हैं। राजनाथ ने पाँच सौ रुपये का नोट नीचे लिखी चिट्टी के साथ उसके पास भेज दिया-