पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१५
अनाथ-बालिका

"प्रिय सतीश,

मुझे बड़ा विस्मय है कि तुम किधर जा रहे हो और क्यों? माताजी तुमको देखने के लिए बड़ी व्यग्र हैं; पर, मुझे भरोसा है कि तुम किसी अच्छे उद्देश्य से ही जा रहे हो। खर्च भेजता हूँ। यथा साध्य शीघ्र लौटना।

शुभानुध्यायी——

राजनाथ।"

पाँचवें छठे दिन इसका उत्तर आ गया। उसमें लिखा था—"पूज्य मामाजी, प्रणाम।

कृपापत्र और ५००) का नोट मिला। मेरे मित्र पण्डित रामसुन्दर को आप जानते ही हैं। उनका एक बहुत ही आवश्यक कार्य है, जिसमें वे मेरी सहायता चाहते हैं। उस कार्य के लिए इधर-उधर घूमना पड़ेगा। मैं आपको पहले पत्र में ही वह कार्य बता देता, जिसके लिए यह तैयारी है; पर उसको गुप्त रखने के लिए उन्हों ने ताकीद कर दी है। अब आप यदि आज्ञा दें, तो मैं उनके साथ चला जाऊँ। आपके उत्तर की मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

सेवक—

सतीश।"

पत्र को पढ़कर राजा-बाबू कुछ देर तक सोचते रहे। फिर उन्होंने नीचे लिखा हुआ प्रत्युत्तर अपने भानजे को भेजा—