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पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२६९

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मुस्कान

गुणसुन्दरी—आपको मेरे अनुरोध की रक्षा करनी चाहिये। आप अवश्य आइयेगा। आपको मेरी शपथ है!

सत्येन्द्र—अच्छा आऊँगा।

गाड़ी चल दी। हृदय थामकर सत्येन्द्र घर लौट आये।

सत्येन्द्र ने देखा कि घर जैसे प्राण-शून्य हो गया है। सबके होते हुए भी वह माधुर्य अन्तर्हित हो गया।

इसीलिये यह सम्पूर्ण सत्य है कि आलम्बन के बिना उद्दीपन केवल शव का मण्डन-मात्र है।

( ६ )

बड़े दुःखित एवं व्यथित होकर सत्येन्द्र घर लौटे थे। यद्यपि गुणसुन्दरी के उस निष्ठुर भाव ने उनके हृदय को बड़ी ही वेदना पहुँचाई थी; पर उसकी चलते समय की शपथ ने उनके उस काल्पनिक तिरस्कार की मात्रा को अधिकांश में दूर कर दिया था। सत्येन्द्र सुशीला से बिना मिले ही अपने कमरे में चले गये और जल्दी-जल्दी कपड़े उतारकर वह बड़े अन्यमनस्क भाव से एक आराम-कुर्सी पर लेट गये। उनके हृदय-श्मशान में, उनकी अभिलाषा की चिंता के आलोक में, प्रेतात्माओं की भाँति प्रवृत्ति-पुञ्ज हाहाकार कर रहा था और उनके मस्तिष्क में विरोधी भावों की सेना तुमुल-संग्राम में प्रवृत्त हो रही थी। सत्येन्द्र बड़े आकुल,बड़े उद्विग्न, एवं बड़े संतप्त हो रहे थे।

रात्रि का अन्धकार क्रमशः प्रगाढ़ हो रहा था। उसी समय उनकी परिचारिका ने उनके कमरे में प्रवेश किया और उसने आते