प्रतिनिधि हो। जब तक तुम मुझे क्षमा नहीं करोगी, तब तक मैं यहाँ से नहीं उठूँगा।
गुणसुन्दरी के सहज-अरुण कपोल लज्जा से और भी गुलाबी हो गये। उसके अधर पर लज्जामयी मन्द मुस्कान नृत्य करने लगी—उसके ललाट पर प्रस्वेद के दो बिन्दु चमकने लगे—उसने सलज्ज भाव से कहा—उठिये जीजाजी! मुझे बड़ी लज्जा मालूम हो रही है। मैं नहीं जानती थी, कि आप नाट्य-कला में भी इतने प्रवीण हैं। यदि आपको इसी में सन्तोष है, तो उठिये, मैं आपको क्षमा करती हूँ। उठिये! जल्द उठिये जीजाजी! मुझे बड़ी लज्जा मालूम हो रही है। दया करके शीघ्र उठिये।
ठीक उसी समय सुशीला ने एक और बड़े कोमल, मधुर, स्वर में यह पद गाते हुए प्रवेश किया——
'देख्यो सखी वह कुञ्ज कुटी तट;
बैठ्यो पलोटत राधिका पाँयन।'
सुशीला का मुख-मण्डल जिस प्रफुल्ल मन्द मुस्कान से विलसित हो रहा था, वह और भी मधुर रहस्यमयी एवं पवित्र अर्थमयी थी।