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उमा

उमा दिल-ही-दिल में कुढ़ती और अपने भाग्य को रोती। उसकी इस दुर्दशा का उत्तरदायित्व केवल उसी पर था। उसके पिता पाश्चात्य सभ्यता के उपासक थे, और स्त्री-जाति के जन्मसिद्धि स्वत्वों के अनुमोदक। वह अपने धनाढ्य पिता की एकलौती बेटी थी। उसकी माता कभी को मर चुकी थी। उसे पूरी आजादी थी, वह जो जी में आता करती, जहाँ चाहती जाती, जिससे चाहती मिलती। उसने बिहारी के साथ अपनी इच्छा से विवाह किया था, पिता की अनुमति केवल नाममात्र को थी। यदि इस भूल का परिणाम केवल उसे ही भुगतना पड़ता, तो कदाचित् इतना दुःख न होता। उसे बड़ा अफसोस इस बात का था कि उसने उस व्यक्ति के साथ अन्याय किया, जो सहानुभूति के योग्य था, उसकी अवहेलना की, जो उसका सच्चा प्रेमी था।

रतन और बिहारी लड़कपन के मित्र थे। दोनों उमा के पड़ोस में रहते थे और उसके यहाँ आया-जाया करते थे। दोनों को उमा से प्रेम था। बिहारी चञ्चल प्रकृति का था, रतन गाम्भीर। बिहारी प्रेम दिखाने के सौ-सौ उपाय करता। रतन दिल की बात कहते हुए भी हिचकता, शरमाता, घबराता। रतन का गाम्भीर्य उसके हक़ में हानिकर सिद्ध हुआ—बिहारी बाजी मार ले गया। उमा की दृष्टि में रतन की गम्भीरता, उसकी शुष्कता और हृदय-हीनता के कारण थी; अतएव रतन यदि कुछ कहना भी चाहता,तो वह उसकी बात काट देतो, या सुनती भी तो बे-मन। लेकिन अब उसे पहले की बातों पर पछतावा होता था।