बात का सबूत हैं। अगले शनिवार को अवश्य आना। उस दिन यहाँ कोई न रहेगा।
तुम्हारी——
श्यामा'
पत्र लिये हुए उमा अपने शृङ्गार-गृह में चली गई! पत्र फिर पढ़ा—सन्देह दृढ़ हो गया। उमा को उदासीनता घृणा में परिणत हो गई।
उमा लौटी कि जाकर पत्र बिहारी की जेब में रख दे; लेकिन वे जाग चुके थे। अतएव उसने पत्र को अपने सन्दूक में बन्द कर दिया।
(३)
उमा के लिये यह पत्र वैसा ही था, जैसे मदिरा बेचनेवाले के लिए सरकारी लाइसेंस। रतन को बुलाना, या उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करना, पहले उसे अनुचित जान पड़ता था; किन्तु अनुचित अब उचित हो गया। बिहारी के अक्षम्य विश्वास-घात के सामने उसका अपना अपराध दब गया। वह सोचती—क्या विश्वास-घात का स्वाभाविक उत्तर विश्वासघात नहीं? उन्होंने मुझे धोखा दिया सब्ज़ बाग़ दिखाया, क्या मैं उस व्यक्ति के साथ सहानुभूति भी न प्रकट करूँ, जिसके साथ अनुचित व्यवहार करने के कारण आज मुझे ये दिन देखने पड़े? यदि वह उचित था, तो यह भी उचित है।
पहले जब बिहारी अपने दोस्तों की दावतों में शरीक होने का