पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/३७

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(२) स्वामीजी




( १ )

हमारे छोटे से जीवन में भी कितने ही व्यापार घटे हैं, कितने ही हर्ष-शोक के समय आये हैं; पर उस दिन की घटना यद्यपि उसे आज पूरे बीस वर्ष गुजर गये, जैसी स्पष्ट याद है वैसी और कोई बात याद नहीं। जब हमारी उम्र चार साल की थी, तब की भी हमें घटना याद है। उस समय ऊपर चढ़ते समय जीने से हम लुढ़क पड़े थे, चोट भी लगी थी। वह बात हमें आज भी जैसी साफ याद है—इन्ट्रेन्स की परीक्षा में इतिहास के पर्चे में क्या पूछा गया था—इस समय बिलकुल याद नहीं। मस्तिष्क-विद्या-विशारद ही इन गुत्थियों को खोल सकते हैं।

जून का महीना था। कालेज की छुट्टियाँ थीं। परीक्षा-फल प्रकट हो चुका था। पास होने की खुशी ताज़ी थी। मित्र भी सब पास हुए थे; इसलिए हरद्वार जाने का प्रस्ताव पेश होते ही 'भारत-रक्षा कानून' की तरह सर्व सम्मति से 'पास' हो गया। उसी दिन रात को पञ्जाब-मेल में सवार होकर मित्र-मण्डली दूसरे